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पीड़िता आरोपी से नहीं सिस्टम से हारती है, पुलिस की निष्क्रियता के चलते पीड़िताएं आत्महत्या करने को हैं मजबूर,क्यों पीड़िता की बलि लेने के बाद जागती है पुलिस?

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भारत में महिला अपराधों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। महिलाओं के साथ होने वाली गंभीर अपराध की लीपापोती इतनी बढ़ी चुकी है कि इसे भी अपराध के बराबर माना जाना चाहिए। महिला सम्बन्धी अपराधों में पुलिस या तो निष्क्रियत दिखाती है या किसी न किसी दबाव के चलते आरोपी पर कार्रवाई करने से बचती है। जिसका परिणाम यह होता है कि पीड़िता थानों के चक्कर लगाकर थक जाती है। उसका मनोबल टूट जाता है और वह आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाने मजबूर हो जाती है। पीड़िताएं आरोपी को तो सज़ा दिलवाना चाहती हैं लेकिन सिस्टम से हार जाती हैं।

विडंबना यह है कि ऐसे अधिकांश मामलों में जहां महिला आत्महत्या करती है या आत्महत्या करने का प्रयास करती है तो पुलिस मौत के बाद एफआईआर दर्ज करती है जो कि आमतौर पर किसी भी मामले में पीड़ित की पहली मांग थी।

उत्तर प्रदेश के बदायूं में एक महिला से कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार के मामले में पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज नहीं करने पर महिला ने आत्महत्या कर ली. महिला की आत्महत्या के कुछ घंटों बाद ही इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई.

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में पुलिस द्वारा कार्रवाई में देरी करने से व्यथित गैंगरेप की शिकार पीड़िता ने आत्मत्या कर ली. परिजनों ने पुलिस की निष्क्रियता को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है.

28 जुलाई 2019 को जयपुर की एक महिला की उस वक्त मौत हो गई जब उसने पुलिस थाना परिसर में आत्महत्या करने की कोशिश की। उसने 2015 में अपने पति के परिचितों द्वारा रेप करने का दावा किया था। पुलिस द्वारा नज़रअंदाज़ करने पर उसने कानपुर एसएसपी के कार्यालय में खुद पर तेल छिड़क लिया और आग लगा ली, और इन ज़ख्मों की चलते एक अस्पताल में उसकी मौत हो गई।

सिर्फ इस मामले में ही नहीं ऐसी कई हालिया घटनाओं में महिलाओं ने अपनी पीड़ा और पुलिस की उदासीनता को उजागर करने के लिए एक आखिरी रास्ते के रूप में अपनी जान दे दी है। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में अध्यापन से जुड़ी श्रुति कुमार का कहना है कि लड़कियां न्याय पाने के एक माध्यम के रूप में आत्महत्या कर रही हैं। वे कहती हैं, “उन्हें काफी दर्द, डर और आक्रोश झेलना पड़ा है और उन्हें लगता है कि यह केवल आख़िरी क़दम बचा है जिसे वे उठा सकते हैं।

अब सवाल है कि पीड़ित महिला के घातक कदम उठाने के बाद ही पुलिस क्यों जागती है। पीड़िता की मौत के बाद एफआईआर भी दर्ज कर ली जाती है और आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया जाता है। लापरवाही करने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई कर महकमे द्वारा अपने कर्तव्यों की इतिश्री भी कर ली जाती है।

सिर्फ कानून बनाने से कुछ नहीं होगा। कानून का पालन करवाने वाली एजेंसी पुलिस पर लगाम कसने के लिए एक मोनिटरिंग कमेटी होनी चाहिए। जो समय समय पर महिला अपराधों पर हो रही कार्रवाई को चेक कर सके। इससे कम से कम पुलिस के ढुलमुल रवैये में परिवर्तन तो आएगा ही साथ ही पीड़िता को न्याय दिलाने में भी आसानी होगी।