जगदलपुर। लोगों के जीवन स्तर को सुधारने और उनके सम्पूर्ण विकास के लिए सरकार बहुत सी योजनाएं बनाती रहती है। लेकिन उन योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए कर्मवीरों को कितनी मशक्कत करनी पड़ती है, कितना जूझना पड़ता है इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। बड़ा आसान होता है मीन मेख निकालना और कहना कि फलां योजना या निर्देशों का पालन नहीं हो रहा। लेकिन जो लोग उसके क्रियान्वयन के लिए किस तरह दिन रात मेहनत कर रहे हैं उस ओर हमारा ध्यान भी नहीं जाता। यहां आज हम बात कर रहे हैं बस्तर जिले के महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की, जो हर दिन नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
बस्तर को कुपोषण मुक्त करना मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का सपना है और इसके लिए जमीनी स्तर पर बहुत सारे प्रयास तेज कर दिए गए हैं। बस्तर जिले में 2016 के मुकाबले कुपोषण की दर लगभग आधी हो गई है। 2016 में बस्तर जिले में कुपोषण की दर 48% थी जो अब घटकर 19.77 प्रतिशत रह गई है। इसके लिए महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी और 1981 आंगनबाड़ी केंद्रों की कार्यकर्ताएं और सहायिकाएं दिन रात मेहनत कर रही हैं। वे घर-घर जाकर विभाग की योजनाओं की जानकारी देती हैं और गर्भवती और शिशुवती महिलाओं और उनके परिजनों को जागरूक करती हैं।
बस्तर जिले को कुपोषण मुक्त करने महिला एवं बाल विकास विभाग का सारा अमला लगा हुआ है। लेकिन उन्हें बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती है अशिक्षा। ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अशिक्षित होने की वजह से विभाग द्वारा दिए गए निर्देशों को अच्छी तरह समझ नहीं पाते। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका जब किसी भी गर्भवती महिला को समझाती है कि आपको पोषक आहार लेना है और स्वास्थ्य केंद्र जाकर समय-समय पर अपनी जांच करवानी है। तब कुछ महिलाएं और उनके परिवार वाले तो इस बात को गंभीरता से लेते हैं और सारे निर्देशों का अच्छी तरीके से पालन करते हैं। लेकिन ज्यादातर लोग उन बातों की अनदेखी करते हैं। एक दो बार कार्यकर्ताओं की बात सुनने के बाद फिर वे चिढ़ने लगते हैं और कभी-कभी तो यहां तक नौबत आ जाती है कि वे आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं को अपने घर से भगा देते हैं। परिजन कहते हैं कि यह हमारा बच्चा है और हम इसका ख्याल रखना बेहतर जानते हैं,अपने तरीके से सब कर लेंगे।
यदि किसी महिला का बच्चा कुपोषित होता है तब उसे सुपोषित करने के महिला बाल विकास विभाग के प्रयासों पर उस वक्त पानी फिर जाता है जब माता पिता उनकी बातों को सिरे से नकार देते हैं। वे देसी तरीकों से उसका इलाज करने का प्रयास करते हैं। सुबह से लेकर शाम तक आंगनवाड़ी कार्यकर्ताएं और सहायिकाएं जूझती रहती हैं कि किसी भी तरीके से गर्भवती महिला और शिशुवती महिला को समझा बुझा कर निर्देशों का पालन करवाया जाए ताकि बस्तर को कुपोषण मुक्त किया जा सके। लेकिन उनकी बातों को गम्भीरता से नहीं लिया जाता। यहाँ तक कि गर्भवती और शिशुवती महिलाओं को आंगनवाड़ी केंद्रों में रोज़ाना एक पोषक आहार दिया जाता है उस रेडी टू ईट फ़ूड को भी सारा परिवार हलवा बनाकर खा जाता है।
महिला बाल विकास विभाग के सामने दूसरी बड़ी चुनौती है स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों की लापरवाही। स्वास्थ्य कर्मी अलग-अलग सेंटर में जाने की अपेक्षा शिशुवती महिला या गर्भवती महिला को एक ही सेंटर में बुलवाती है।आंगनवाड़ी कार्यकर्ता शिशुवती महिला और गर्भवती महिला को किसी तरह समझा-बुझाकर स्वास्थ्य केंद्र तक लेकर आती है तो वहां पर सुबह से लेकर शाम घण्टों उन महिलाओं को एएनएम का इंतजार करना पड़ता है। अपनी सुविधा के अनुसार एएनएम सेंटर बन्द होने के समय पहुंचती है और जल्दबाजी करने लगती हैं। तब तक महिलाएं भूखी प्यासी रहकर और लंबे इंतजार के बाद थक चुकी होती हैं या अपने किसी जरूरी काम से वापस जा चुकी होती हैं। उन्हें अगली बार फिर से सेंटर में लेकर आने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है।
महिला एवं बाल विकास विभाग के सामने इसके अलावा और भी कई चुनौतियां हैं जिससे वे समय समय पर जूझते रहते हैं। बावजूद इसके चार सालों में कुपोषण की दर को आधा कर उन्होंने यह बता दिया है कि दृढ़ इच्छाशक्ति से हर काम किया जा सकता है और एक दिन वे जरूर कामयाब होंगे। हालांकि बस्तर को कुपोषण मुक्त करने अभी भी बहुत काम करना बाकी है। उम्मीद करते हैं कि बहुत जल्द मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बस्तर को कुपोषण मुक्त करने का सपना पूरा होगा और यहां के बच्चे स्वस्थ और हष्ट पुष्ट होकर बस्तर के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।