जगदलपुर (महिलामीडिया)। प्रदेश में सरकार बनाने के अट्ठारह महीने बाद निगम-मंडलों में मनोनयन किए जाने के लिए कांग्रेस आलाकमान से हरी झण्डी मिलने के साथ ही बस्तर के कांग्रेस नेता सक्रिय हो गए हैं। लगातार पंद्रह सालों तक विपक्ष में रहने के कारण संघर्ष करने, विधानसभा की सभी बारह सीटों पर जीतने, लोकसभा के चुनाव में सफलता और नगरीय निकायों के चुनाव में कामयाबी दिलाने के बाद बस्तर कांग्रेस के नेता आस लगाकर बैठे हैं कि पुरस्कार के रूप में उन्हें निगम-मंडल की कुर्सी देकर नवाजा जाएगा। ऐसे सभी दावेदारों ने रायपुर से लेकर दिल्ली तक अपने राजनीतिक सम्पर्कों को टटोलना शुरू कर दिया है।
अगर कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी प्रभारी पीएल पुनिया के इस बयान को आधार माना जाए तो प्रदेश में अगले दस दिनों में निगम-मंडलों में मनोनयन कर दिया जाएगा। बस्तर से भी निगम-मंडलों के लिए कई प्रबल दावेदार हैं जिन्होंने रायपुर से लेकर दिल्ली तक अपनी कोशिशें जारी कर दी हैं। दावेदारों में जगदलपुर से नगर पालिक निगम के पूर्व महापौर जतिन जायसवाल का नाम सबसे ऊपर है। जतिन एक सुलझे हुए नेता हैं और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के काफी करीबी बताए जाते हैं। स्वच्छ छवि व शिक्षित होने के नाते उन्हें एक सशक्त दावेदार माना जा रहा है।
इसके अलावा बस्तर परिवहन संघ के अध्यक्ष मलकीत सिंह गेंदू भी एक ताकतवर दावेदार माने जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव में वे जगदलपुर से कांग्रेस के प्रबल दावेदार रहे हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने कांग्रेस का झंडा थामे रखा। एक दबंग नेता होने के साथ ही बस्तर सांसद दीपक बैज के करीबी होने के कारण उनकी रायपुर से लेकर दिल्ली तक अच्छी पकड़ है। वे प्रदेश कांग्रेस के महासचिव भी रह चुके हैं और इस बार प्रदेश संगठन में उन्हें जगह न दिए जाने के बाद से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें किसी निगम या मण्डल में मनोनीत किया जा सकता है।
बस्तर की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले मिथिलेश स्वर्णकार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का काफी करीबी माना जाता है। उनकी शानदार रणनीति का ही असर था कि बस्तर में कांग्रेस को अच्छे मतों से जीत मिली। एक अन्य दावेदार में जगदलपुर जिला अध्यक्ष राजीव शर्मा भी हैं, जिन्होंने बस्तर में न सिर्फ कांग्रेस को एकजुट किया बल्कि अच्छे प्रबंधन के द्वारा जगदलपुर विधानसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज कराई। अपने कुशल नेतृत्व के दम पर नगर निगम चुनाव में जीत का परचम लहराने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। महिलाओं में कविता साहू भी निगम-मंडल की प्रबल दावेदार रही हैं लेकिन नगर निगम सभापति बनने के बाद उनका रास्ता बंद होता दिखाई दे रहा है।
दक्षिण बस्तर से महेंद्र कर्मा के काफी करीबी माने जाने वाले सत्तार अली का नाम भी निगम-मंडलों की दौड़ में शामिल है। दो बार प्रदेश सचिव के पद पर काबिज रहे एक दमदार नेतृत्व के रूप में उन्होंने अपनी छवि बनाई है। दिवंगत महेंद्र कर्मा के पुत्र छबीन्द्र कर्मा भी दंतेवाड़ा से निगम-मंडल की दौड़ में शामिल हैं। विधानसभा चुनाव के समय उन्होंने टिकट की मांग की थी लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिली। जिसके बाद उन्होंने बागी रुख अख्तियार कर लिया था। तब बड़े दिग्गज नेताओं को हस्तक्षेप करना पड़ा था। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि कोई पद देकर उन्हें संतुष्ट किया जा सकता है।
देखना यह होगा कि बस्तर से कौन दिग्गज अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर निगम-मंडलों की कुर्सी हासिल करेगा। सूत्रों की मानें तो पद देने से पहले हर तरह की पड़ताल की जाएगी। पार्टी में उनकी पकड़ के साथ ही कार्यकर्ताओं में उनकी स्वीकार्यता भी देखी जाएगी। हर पहलू और समीकरण पर विचार कर ही निगम-मंडलों में उनकी नियुक्ति की जाएगी।