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तनावग्रस्त व्यक्ति से सहानुभूति ही बचा सकती है अनमोल जीवन,आत्महत्या रिपोर्टिंग पर कार्यशाला संपन्न

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जगदलपुर। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा आत्महत्या की रिपोर्टिंग पर मीडियाकर्मियों के लिए संवेदीकरण पर आज जगदलपुर में कार्यशाला आयोजित की गई। यह कार्यशाला सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च संस्थान नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित की गई थी।

कार्यशाला में मुख्य वक्ता दंतेवाड़ा पुलिस अधीक्षक डाॅ. अभिषेक पल्लव ने कहा कि मानसिक रुप से तनावग्रस्त व्यक्ति से सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि मानसिक रोग भी शारीरिक रोग की तरह ही होता है और इसका उपचार भी दवाईयों से संभव है। मानसिक रुप से तनावग्रस्त व्यक्ति के साथ सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करके न केवल उसके अनमोल जीवन को बचाया जा सकता है, बल्कि समाज और देश के निर्माण में उसका भरपूर सहयोग भी लिया जा सकता है।

श्री पल्लव ने कहा कि मानिसक रोग आमतौर पर अचानक होता है, किन्तु इसका रोगी ठीक भी जल्दी होता है, किन्तु इसके लिए रोगी को शीघ्र उपचार उपलब्ध कराना जरुरी है। उन्होंने नशीले पदार्थों के सेवन की बुरी आदतों से ग्रस्त लोगों को भी नशे की लत छुड़ाने में सहयोग करने की अपील की।

मनोरोग चिकित्सक डाॅ. शमा हमदानी ने बताया कि हर 500 की आबादी में 4 से 5 लोग मानसिक रोग के शिकार होते हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं और परिजनों को मनोरोगियों को इलाज के लिए तत्काल मनोरोग विशेषज्ञ या जिला अस्पताल में स्पर्श क्लीनिक में लेकर जाएं। भारत में 8 लाख लोग मानसिक रोग से बीमार हैं। जबकि छत्तीसगढ़ में आत्महत्या के मामले प्रतिलाख व्यक्ति में 27.7 देशभर में चौथे नंबर पर है, इसमें भी प्रदेश के दुर्ग-भिलाई जिले में 34.9 प्रतिशत के साथ राष्ट्रीय औसत 10.6 से अधिक है। हर 40 सेकेंड में एक जान जा रही है। अस्पतालों के ओपीडी में आने वालों में लगभग 65 फीसदी मरीज मनोरोग के शिकार होते हैं। एक दिन में 20 से 25 लोग सुसाइड कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं।

सीएफएआर की वरिष्ठ सलाहकर सुश्री आरती धर का कहना है कि आत्महत्या की घटना को रोकने या कम करने में पत्रकारों के फील्ड रिपोर्टिंग के दौरान सोशल रेस्पोंसबिलिटी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि 50 से ज्यादा रिसर्च में ये बात सामने आयी है कि मीडिया, फिल्म में आत्महत्या के तरीकों को देखकर समाचारों में पढ़कर लोग नकल करते हैं। इस लिए मीडिया कर्मियों को समाचार में आत्महत्या शब्द से बचना चाहिए। लोगों के मन में सकारात्मक खबरों से बदलाव आता है। जो अपनी जिंदगी से परेशान हो जाता है वो सुसाइट कर लेता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से आत्महत्या को रोकने के लिए वर्ष 2008 में 11 बिंदुओं पर दिशा निर्देश जारी किया गया है। खबरों में सावधानियां बरते हुए आत्महत्या को सनसनी खेज बनाने की जरूरत नहीं है। जनता को शिक्षित करने तनावग्रस्त लोगों की मदद के लिए आत्महत्या की फोटो की जगह मेडिकल हेल्पलाइन नम्बर प्रकाशित किया जा सकता है। मीडिया कर्मियों , पत्रकारों और कॉपी एडिटर को रिपोर्टिंग के पैटर्न में बदलाव लाने की जरूरत है। कार्यशाला के अंतिम सत्र में पत्रकारों ने कई सवाल भी किए। वहीं कुई वरिष्ठ पत्रकारों ने अपनी अनुभव शेयर किए। कार्यशाला में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ. देवेन्द्र नाग, सिविल सर्जन डाॅ. विवेक जोशी, श्री संजय प्रसाद, डाॅ. अनंत महतो, डाॅ. ऋषभ साव सहित चिकित्सक एवं पत्रकार उपस्थित थे।