जगदलपुर। एशिया का सबसे बडा संघ बस्तर परिवहन संघ पर लगा ग्रहण अब गहरा हो चुका है। सत्तारूढ़ दल के दो बाहुबलियों के अस्तित्व के लिए लडी गई एक लडाई का परिणाम यह हुआ कि राज्य सरकार ने बस्तर परिवहन संघ को भंग कर दिया। सरकार के लिए भले ही यह एक सामान्य आदेश रहा होगा लेकिन बस्तर में इसका व्यापक असर हुआ। संघ से प्रत्यक्ष रूप से जुडे 24 सौ तथा अप्रत्यक्ष रूप से जुडे 45 हजार लोगों के सामने रोजी-रोटी का गंभीर संकट खडा हो गया। मुख्यमंत्री, मंत्री से लेकर विधायक तक संघ के पदाधिकारी हर उस चौखट तक गए, जहां से उन्हें न्याय की उम्मीद थी परंतु सत्ताधीशों ने उनकी एक न सुनी। नतीजतन संघ से जुडे कामगार धीरे-धीरे आर्थिक रूप से कमजोर होते चले गए और दो साल पहले तक चार ट्रकों के मालिक अब ड्राइवर बनकर रह गए हैं क्योंकि परिवार की भूख तो उन्हें मिटानी ही है।
जगदलपुर विधानसभा चुनाव में बस्तर परिवहन संघ की भागीदारी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र से विधानसभा तक पहुंचने का रास्ता बस्तर परिवहन संघ से होकर ही गुजरता है। सीधे तौर पर 40 हजार से अधिक मतदाता चुनाव नतीजों को किसी भी तरफ मोडने के लिए पर्याप्त हैं। शायद यही वजह है कि बस्तर परिवहन संघ में कब्जा करना प्रतिष्ठा माना जाता है। चूंकि बस्तर परिवहन संघ जगदलपुर विधानसभा के चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है, इसलिए महिलामीडिया डॉट इन ने संघ पहुंचकर उन लोगों से बात करने की कोशिश की, जो संघ के भंग होने के बाद नारकीय जीवन जीने के लिए विवश हो रहे हैं।
बाहुबलियों की लडाई में पिसा संघ
संघ के सदस्य प्रदीप पाठक ने बताया कि संघ का अपना निर्धारित काम है, जिससे हजारों परिवारों में चूल्हा चलता रहता है। 11 मई 2016 के दिन की याद करते हुए वे बताते हैं कि सत्तारूढ दल के दो बाहुबलियों के बीच खुटपदर में इतनी बडी लडाई हुई, जिसमें गोली तक चल गई। उस घटना से संघ या संघ के किसी भी पदाधिकारी का कोई लेना-देना नहीं था परंतु स्थानीय जिला प्रशासन व फिर राज्य सरकार ने बिना किसी जांच के बस्तर परिवहन संघ को भंग करके वहां ताला जड दिया।
बिगड़े हालात
प्रदीप पाठक के साथ संघ के अन्य सदस्यों ने बताया कि संघ के भंग होने के बाद इससे जुडे हजारों परिवारों का जीवन थम सा गया। चार हजार से अधिक ट्रकों के पहिए जाम हो गए। ऋण लेकर ट्रक खरीदने वालों के सामने किश्त अदा करने का संकट पैदा हो गया। चूंकि ट्रकों का चलना बंद हो गया था अत: बाजार से उधारी मिलना भी बंद हो गई। धीरे-धीरे घरों के चूल्हे बंद होने शुरू हो गए क्योंकि इससे अप्रत्यक्ष रूप से जुडे 45 हजार लोगों के पास अन्य कोई काम नहीं था। महिलाओं ने जेवर गिरवी रखकर घर चलाया। बच्चों को प्राइवेट स्कूलों से निकालकर सरकारी स्कूलों में भेजना शुरू किया। कई परिवारों ने तो बस्तर ही छोड दिया। दुखद स्थिति यह रही कि दो साल पहले तक जो लोग चार-चार ट्रकों के मालिक हुआ करते थे, वे ड्राइवर बन गए। परिवार को पालने के लिए ऑटोरिक्शा चलाने लगे।
फोन उठाना बंद
संघ के जुडे इन लोगों ने बताया कि हालात इतने खराब हो चुके हैं कि अब तो नाते-रिश्तेदारों ने भी फोन उठाना बंद कर दिया है कि कहीं कर्ज न मांग लें। बाजार से भी उधारी बंद हो चुकी है। भाजपा सरकार के इस एक फैसले ने हजारों परिवारों को बडी मुसीबत में डाल दिया है।
सबने टरकाया
संघ के इन सदस्यों को राजनीतिक दलों खासकर भारतीय जनता पार्टी से बहुत शिकायत है। भाजपा की सरकार ने बिना किसी जांच-पडताल के संघ के पहले भंग कर दिया, इसके बाद प्रभावितों की खोज-खबर भी नहीं ली। संघ के सदस्य बताते हैं कि संघ को बहाल करने के लिए संघ के पदाधिकारी जगदलपुर से लेकर रायपुर तक दर्जनों चक्कर लगाए। मुख्यमंत्री, मंत्री और स्थानीय विधायक से भी गुजारिश की। मुख्यमंत्री तो इसके बारे में कोई जवाब नहीं दे पाए। मंत्री और विधायक केवल टरकाते रहे। उन्होंने बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलकर भी उन्होंने समस्या बताई। राहुल गांधी के निर्देश पर नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव तथा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ने विधानसभा में आवाज उठाई परंतु समस्या का कोई हल नहीं निकल पाया। संघ के सदस्यों का कहना है कि भाजपा सरकार के इस फैसले से पिछले दो सालों में बस्तर की आर्थिक प्रगति रुक गई है।