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कांग्रेस सरकार में कलक्टर की हैसियत मंत्री-विधायकों के साथ बैठने की नहीं!सरकारी बैठक में कलक्टर को बिठाया गया मंच के नीचे, प्रभारी मंत्री की मौजूदगी में कलक्टर को नहीं दी गई कुर्सी, आत्ममुग्ध कांग्रेसजनों ने पहले आदिवासियों को फिर नौकरशाही को किया अपमानित

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जगदलपुर। भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में प्रशासनिक आतंकवाद का दंश झेलने वाले कांग्रेसजन अब बदला लेने पर उतारू हो गए हैं। यही वजह है कि जिला मुख्यालय जगदलपुर में प्रभारी मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम की मौजदूगी में एक अगस्त को आयोजित समीक्षा बैठक में कलक्टर डॉ. अय्याज फकीरभाई तम्बोली को मंच पर जगह नहीं दी गई। मंच पर प्रभारी मंत्री के साथ स्थानीय सांसद, विधायक व महापौर मौजूद थे परंतु किसी ने भी इस व्यवस्था का विरोध नहीं किया। आखिरकार कलक्टर ने मंच के नीचे से ही समीक्षा बैठक का संचालन किया।

प्रभारी मंत्रियों की मौजूदगी में जिलों में सरकारी योजनाओं की समीक्षा के लिए आयोजित होने वाली बैठकों में सम्बंधित जिलों के कलक्टर सचिव की भूमिका में होते हैं क्योंकि उन्हें सभी प्रकार की सरकारी योजनाओं व उनकी प्रगति की जानकारी होती है। उनके प्रस्तुतिकरण के बाद ही बैठक में मौजूद निर्वाचित जनप्रतिनिधि योजनाओं पर अपनी राय रखते हैं। ऐसी बैठकों में सचिव की भूमिका में कलक्टरों को बैठक में मंच पर ही स्थान दिया जाता है। कई सरकारी बैठकों में तो अधिकारियों के लिए मंच के बराबर बैठने की व्यवस्था की जाती है लेकिन एक अगस्त को जिला मुख्यालय जगदलपुर की समीक्षा बैठक में तस्वीर बिलकुल भी बदली हुई देखी गई। मंच पर प्रभारी मंत्री व सांसद-विधायक आसीन थे, वहीं कलक्टर अपने अधीनस्थों के साथ मंच के नीचे बैठकर योजनाओं की जानकारी दे रहे थे।

जिला जनसम्पर्क ने जैसे ही इस बैठक की तस्वीरों को जारी किया प्रदेश की नौकरशाही में नाराजगी दिखाई देने लगी। राजधानी में पदस्थ भारतीय प्रशासनिक सेवा के कई अधिकारियों ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि कम से कम प्रभारी मंत्री की मौजूदगी में इस प्रकार का घटनाक्रम नहीं होना चाहिए। संकेत मिले हैं कि इस घटना के बाद राज्य सरकार का सामान्य प्रशासन विभाग समीक्षा बैठकों के लिए एक गाइड लाइन जारी करने की तैयारी में है, जिससे अफसरों को अपमानित होने से बचाया जा सकेगा।

छह सौ साल पुरानी परम्परा तोड़ी
कलक्टर को मंच के नीचे बिठाने से पहले प्रभारी मंत्री की उपस्थिति में जगदलपुर कांग्रेस के नेताओं ने बस्तर की छह सौ साल पुरानी आदिवासी परम्परा को ध्वस्त कर दिया। उनके इस कृत्य से न केवल बस्तर का राजपरिवार अपितु सभी वनवासी नाराज हो गए हैं। एक अगस्त को ही प्रभारी मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, सांसद दीपक बैज, और जगदलपुर विधायक रेखचंद जैन ने दशहरे की सैकड़ों साल पुरानी परम्परा को तोड़ते हुए सुबह 9:30 बजे ही पाटजात्रा की पूजा कर दी, जबकि पाट जात्रा की पूजा की शुरुआत राजमहल से आई पूजन सामग्री के बाद ही होती है। दूरदराज से आए मांझी-चालकी पूजा संपन्न कराने के बाद बस्तर महाराजा को इसकी सूचना देते हैं। लेकिन कांग्रेस नेताओं ने बस्तर की आदिवासी परंपरा की परवाह नहीं की और अपनी उपस्थित दर्ज कराने पाट जात्रा की पूजा की। दिलचस्प बात यह रही कि इसकी जानकारी नकलेक्टर को थी और न ही तहसीलदार को।

कांग्रेस नेताओं के इस कृत्य पर बस्तर महाराजा कमलचंद भंजदेव ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा है कि राजनीति को बस्तर की परंपराओं से दूर रखें। इस मामले को लेकर मांझी चालकी काफी नाराज हैं। उनका कहना है कि राजपरिवार की अनुपस्थिति में पूजा करके आदिवासी परंपराओं में हस्तक्षेप को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हालांकि इसके बाद बस्तर सांसद दीपक बैज ने बाद में माफी मांग ली है। लेकिन सवाल है कि बस्तर दशहरे की समृद्ध परंपरा से सांसद और बस्तर के अन्य जनप्रतिनिधि कैसे अनभिज्ञ हैं।

बैठक में मैं देर से पहुंचा और देखा कि कलेक्टर नीचे बैठे हुए हैं लेकिन उस वक्त मैंने हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझा।
दीपक बैैज, सांसद

किसी भी सरकारी बैठक में बैठने की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होती है। यह तो कलक्टर को व्यवस्था करनी थी कि कौन कहां बैठेगा।
रेखचंद जैन, विधायक