सुनील कुमार सिर्फ चार साल के थे जब एक हादसे ने उनके दोनों हाथ छीन लिए। मां-बाप को इस घड़ी में उनका साथ देना चाहिए था, लेकिन शायद बच्चे की पूरी जिंदगी में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने की हिम्मत उनमें नहीं थी। उन्होंने बच्चे को अस्पताल में उसकी किस्मत पर छोड़ दिया और वहां से चले गये। लेकिन सुनील कुमार की किस्मत में दर-दर की ठोकरें खाने की बजाय कुछ और ही लिखा था। उनकी किस्मत ने उन्हें एक ऐसे आश्रम में पहुंचा दिया जहां ऐसे विशेष बच्चों को जीवन जीने की सीख दी जाती है। यहां सुनील ने अपने पैरों को हाथ बनाने का हुनर सीखा।
सुनील कुमार के अनुसार वे पंचकुला हरियाणा के आसपास कहीं रहते थे। एक दिन बिजली की चपेट में आकर वे बुरी तरह घायल हो गये। मां-बाप ने इलाज के लिए उन्हें चंडीगढ़ पीजीआई में भर्ती कराया, लेकिन बिजली की चपेट में बुरी तरह आ जाने के कारण उनके दोनों हाथों ने उनका साथ छोड़ दिया। शायद मां-बाप इस परेशानी को उठाने की हिम्मत नहीं दिखा पाए। उन्होंने उन्हें अस्पताल में छोड़ दिया और वहां से चले गये। एक महिला को उन पर दया आई। उन्हीं की मदद से वे मदर टेरेसा हरियाणा साकेत काउन्सिल परिषद में आये। यहीं उनकी जिंदगी ने आकार लेना शुरू कर दिया और आज इस मुकाम तक पहुंची है जहां उन्हें भी खुद पर गर्व महसूस होता है। तब से आज तक यही उनका ठिकाना है।
प्रशिक्षकों की मदद से उन्होंने धीरे-धीरे पैरों की अँगुलियों से पेन पकड़ना और कम्प्यूटर के की-बोर्ड को साधना सीखा। इस तरह उनकी शिक्षा ‘डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन’ तक पहुंची। लेकिन सुनील को कम्प्यूटर से ज्यादा मजा ब्रश और पेंट से चित्र उकेरने में आता था। इसी लगाव ने उन्हें एक चित्रकार बनने को प्रेरित किया और आज वे एक सफल चित्रकार के रूप में पहचान बना चुके हैं।
राष्ट्रपति से मिला पुरस्कार
सुनील की अद्भुत क्षमता धीरे-धीरे उनकी सफलता के राह खोलने लगी। एक बार उन्होंने ‘सेव पांडा’ थीम पर एक विशेष चित्र बनाया। इस चित्र के लिए उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल से विशेष सम्मान भी मिला। सुनील बताते हैं कि इसके बाद उन्होंने इसी को अपनी जिंदगी बना लिया। आज सुनील कुमार की पेंटिंग काफी ऊंची कीमतों में बिकती है जो पांच सितारा होटलों की लॉबी से लेकर सामान्य लोगों के घरों की शोभा बढ़ा रही है। दुनिया पर यही ‘जीत’ उन्हें सुकून दे रही है और जिंदगी जीने का मकसद भी।
साभार अमर उजाला