लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही राजनीतिक दलों ने अपनी चुनावी रणनीति को अंजाम देना शुरू कर दिया है. इस सियासी समर के उद्घोष के साथ ही चुनाव प्रचार शुरू हो चुका है. चुनावी नारों के मामले की बात करें तो अब तक सत्तारूढ़ पार्टी को छोड़कर बाकी दल खासकर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पिछड़ती नजर आ रही है. बीजेपी जहां ‘मोदी है तो मुमकिन है’ और ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ के साथ मैदान में है तो कांग्रेस के खेमे में इसे लेकर फिलहाल सन्नाटा है.
बीजेपी और मोदी सरकार के मंत्री गाजे-बाजे के साथ ‘मोदी है तो मुमकिन है’ नारे के प्रचार-प्रसार में जुटे हैं. खुद प्रधानमंत्री मोदी अपनी चुनावी रैलियों में इस नारे को ताल ठोक कर लगा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के पास इस नारे की काट का कोई नारा अब तक नहीं है. कांग्रेस के तमाम नेता और खुद पार्टी ‘मोदी है तो मुमकिन है’ के नारे के साथ ही मोदी सरकार और बीजेपी पर हमला कर रहे हैं. मतलब उनकी भूमिका सिर्फ बीजेपी के नारे पर रिएक्शन तक ही सीमित है. चुनाव कार्यक्रम घोषित होते ही जब ये साफ हुआ की मतगणना 23 मई को होगी तो कांग्रेस के कुछ नेताओं ने ’23 मई-बीजेपी गई’ नारे और हैशटैग के साथ ट्वीट किए, लेकिन उसे कांग्रेस का आधिकारिक नारा नहीं माना जा सकता.
कांग्रेस को कोई ऐसा नारा खोजना होगा जो मोदी के नारे को काट दे सके साथ ही जनता को प्रभावित कर सके. फिलहाल वक्त कम है और कांग्रेस अपना खुद का नारा लगाने की बजाय बीजेपी के नारों का ही विरोध कर रही है. इससे एक नकारात्मक छवि जनता के पास जा रही है जिससे बचने की जरूरत है.