नई दिल्ली : दिल्ली के सियासी गलियारे में आज सोमवार को एक बड़ी हलचल देखने को मिली. इस हलचल का असर दक्षिण की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है.आज तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एदापल्ली के. पलानीस्वामी ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. मुलाकात के बाद पलानीस्वामी ने भी चर्चाओं के बाजार को और हवा देते हुए संकेत दिए कि गठबंधन के लिए वह चुनावों की तारीख घोषित होने के बाद विचार करेंगे.
हालांकि, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने इस मुलाकात को औपचारिक मुलाकात बताया. के. पलानीस्वामी ने कहा कि उन्होंने तमिलनाडु के कई मुद्दों को प्रधानमंत्री के समक्ष रखा. साथ ही उन्होंने कहा, ‘हमने भूतपूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता (अम्मा) तथा अरईनार अन्ना (सीएन अन्नादुरई) को ‘भारत रत्न’ दिए जाने की मांग की है, साथ ही चेन्नई रेलवे स्टेशन का नाम AIADMK के संस्थापक एमजी रामचंद्रन के नाम पर रखा रखने की मांग की है.
पत्रकारों ने जब दक्षिण में एआईएडीएमके और बीजेपी के साथ तालमेल पर सवाल किया तो उन्होंने इस बात से इंकार नहीं किया बल्कि कहा कि गठबंधन के बारे में चुनावों की तारीख की घोषणा होने के बाद विचार किया जाएगा.पलानीस्वामी के गठबंधन को लेकर इस संकेत से दिल्ली के साथ दक्षिण की राजनीति में हलचल मचने लगी है. क्योंकि बीजेपी दक्षिण में अपनी पैठ जमाने के लिए किसी सहारे की तलाश में हैं और दक्षिण की राजनीति में तमिलनाडु एक मुख्य केंद्र है.
कर्नाटक के बाद बीजेपी की नजर तमिलनाडु पर लगी हुई हैं. और वह लगातार ऐसे मौके तथा दल की तलाश में है, जिसके सहारे दक्षिण की राजनीति में कमल खिलाया जा सके. उधर, एआईएडीएमके को भी किसी मजबूत सहारे की दरकार है.
जब जयललिता ने किया अटल बिहारी वाजपेयी को सत्ता से बाहर
हालांकि, इतिहास के पन्ने टटोलें तो एआईएडीएमके और बीजेपी नीत एनडीए का पुराना और कटु संबंध रहा है. किसी समय में एआईएडीएमके प्रमुख जयललिता केंद्र में एनडीए का एक हिस्सा थीं. जयललिता और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बीच अच्छा तालमेल भी था, लेकिन इस तालमेल के बीच तत्कालीन कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी आ गईं.
1999 में तमिलनाडु में एआईएडीएमके की सत्ता थी और जयललिता मुख्यमंत्री थीं. उनके समर्थन के साथ केंद्र में एनडीए की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. लेकिन जयललिता और सोनिया गांधी के बीच एक मुलाकात के बात जयललिता ने केंद्र सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और एनडीए सरकार अल्पमत में आ गई.
राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री वाजपेयी को बहुमत साबित करने के लिए कहा. वाजपेयी सरकार ने विश्वास प्रस्ताव रखा और 17 अप्रैल, 1999 को लोकसभा में इस पर वोटिंग हुई. लेकिन वाजपेयी सरकार केवल एक वोट से बहुमत साबित नहीं कर पाई और उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 269 और विरोध में 270 वोट पड़े थे और इस तरह से 13 महीने की पुरानी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार महज एक वोट गिर गई.
पहले भी दे चुके हैं गठबंधन के संकेत
तमिलनाडु में सत्ताधारी दल अन्नाद्रमुक (एआईएडीएमके) पहले भी बीजेपी के साथ गठबंधन के संकेत दे चुका है. इसी साल अप्रैल में जब तमिलनाडु में मुख्य विपक्षी दल डीएमके की अगुआई में कावेरी विवाद को लेकर धरने-प्रदर्शन चल रहे थे, तब एआईएडीएमके ने कहा था कि विपक्षी दल कितना भी विरोध-प्रदर्शन करें, लेकिन बीजेपी के साथ उनके संबंध खराब नहीं हो सकते हैं. एआईएडीएमके के मुखपत्र ‘नामादु पुराची थलैवी अम्मा’ के एक लेख में लिखा गया था कि केंद्र और राज्य सरकार के मजबूत और मधुर संबंधों को कोई कमजोर नहीं कर सकता है. मुखपत्र में लिखा था कि ऐसे संकेत और साफ होते जा रहे हैं कि देश की राजनीति में एआईएडीएमके और बीजेपी, दोनाली बंदूक की दोनों नालों की तरह काम करें.