Home साहित्य मेरे शहर का गौरव: उर्मिला आचार्य और बस्तर से परिचय करवाती...

मेरे शहर का गौरव: उर्मिला आचार्य और बस्तर से परिचय करवाती उनकी कहानी सरगतारा

701
0

जगदलपुर। बस्तर की महिलाएं प्रतिभा में किसी से कम नहीं है। कहानी,कविता,नृत्य,गायन सभी क्षेत्रों में यहां की विदुषी महिलाओं ने देश दुनिया में अपनी पहचान बनाई है। आज हम जगदलपुर की एक ऐसी ही महिला की बात कर रहे हैं जो किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। सर्वगुण संपन्न, अद्भुत व्यक्तित्व की धनी और सौम्य, सरल उर्मिला आचार्य अपनी विलक्षण प्रतिभा के दम पर अपना लोहा मनवा चुकी हैं। 2 जून 1953 को जन्मीं व्याख्याता (हिंदी) के पद पर कार्यरत रहीं उर्मिला इन दिनों राज्य स्तरीय शिक्षा और साक्षरता समिति के कोर ग्रुप की सदस्य हैं। उर्मिला आचार्य मूलतः कहानीकार हैं । उनकी कहानियाँ उदभावना, उत्तरार्ध, अक्षरपर्व, कथादेश, कथ्यरूप,समरलोक,सूत्र, अक्षर की छाँव, निचोड़, ककसाड़ एवं अन्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं है ।

सरगतारा उनका प्रकाशित कहानी-संग्रह है। कहानी के क्षेत्र में इस संग्रह को हिन्दी लेखिका संघ मध्यप्रदेश भोपाल का ब्रह्मदत तिवारी पुरस्कार और हिन्दी साहित्य परिषद बख्शी सृजन पीठ का पुरस्कार मिला हुआ है। कहानी सरगतारा बस्तर क्षेत्र की सामाजिक, भाषिक और भौगोलिक पृष्ठभूमि से हमारा परिचय करवाती है। कहानी की सघन बुनावट , स्थानिक संवादों की स्वाभाविकता और हर घटना की एक प्रतिच्छाया जिस तरह आंखों के सामने चित्र की तरह उभरती है। ये सारे घटक कहानी की धार को थोड़ा और पैना कर देते हैं ।

यह कहानी महज सरगतारा और फगनू के बीच की ही प्रेम कहानी नहीं है। यह कहानी सरगतारा और प्रकृति तथा इस प्रकृति में घुले-मिले छेरी (बकरी) जैसे पालतू पशुओं के बीच की भी प्रेम कहानी है । यह प्रेम बहुत जीवंत है जिसमें प्रकृति और कथा नायिका सरगतारा संवाद और संवेदना के स्तर पर आपस में गुँथे हुए दिखते हैं । यह गुँथाव इस तरह है जैसे एक दूसरे के बिना उनका जीवन अधूरा है । प्रकृति में ही प्रेम की जड़ें रोपित हैं। दरअसल यह कहानी हमें उसी प्रेम की ओर ले जाने लगती है। प्रकृति जैसे-जैसे नष्ट होती जाएगी शोषण की कहानियां बढ़ती चली जाएंगी। प्रेम का नमक दुर्लभ होता जाएगा । फगनू और सरगतारा की प्रेम कहानी के बहाने उर्मिला आचार्य अपनी कहानी में प्रकृति में जन्मे प्रेम के इसी नमक को न केवल बचाने की मांग करती हैं बल्कि बचाने के साथ साथ उसकी सुलभता की मांग भी प्रखरता के साथ उठाती हैं , क्योंकि जीवन के इस नमक पर हर मनुष्य का निजी अधिकार है ।