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चौराहों पे चर्चा – मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की चुनावी सभा में भीड़ तो थी पर करंट क्यों नहीं था?

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करमजीत कौर
संपादक
जगदलपुर। कल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की चुनावी सभा जगदलपुर के चर्च मैदान में हुई। सभा में भीड़ तो पहुंची लेकिन उनमें वैसा उत्साह देखने को नहीं मिला जैसा कि भूपेश बघेल की सभा में आमतौर पर होता है। मंच से भाषण देने वाले नेताओं के आह्वान के बावजूद भी लोग नारेबाजी नहीं कर रहे थे। या यूं कहें कि उन भाषणों में कोई ऐसी बात नहीं थी जो उन्हें पब्लिक से कनेक्ट कर पाती। सिर्फ दीपक बैज का भाषण ही प्रभावशाली था। सिर्फ मंच के सामने उपस्थित 12-15 लोग ही नारे लगा रहे थे। बाकी पब्लिक खामोश बैठी हुई थी।

अचरज का विषय भी था कि अचानक ऐसा क्या हो गया जो लोगों में कहीं भी करंट नहीं दिखाई दे रहा था। मंच पर मौजूद छग प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दीपक बैज ने खड़े होकर लोगों को तालियां बजाने को कहा तब लोगों ने तालियां बजाई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी इस बात को शायद भाँप गए थे इसलिए वे भी बार-बार पब्लिक से सवाल पूछ रहे थे तब कहीं जाकर सभा में मौजूद कुछ लोग ही जवाब दे रहे थे।

इन सब बातों को देखकर शहर में चर्चाओं का बाजार गर्म है। महिलामीडिया डॉट इन की टीम ने जब लोगों से चर्चा की कि लोगों ने अलग अलग वजहें बताई। कुछ लोगों का कहना है कि मनपसंद कैंडिडेट को टिकट न दिए जाने से लोग नाराज हैं। अपने जिन नेताओं के लिए उन्होंने जमीनी स्तर मेहनत की थी उनकी जगह दूसरे दावेदारों को टिकट दिए जाने से उनमें उत्साह की कमी देखने को मिल रही है। कुछ लोगों ने भीतराघात की भी संभावना जताई।

इस विषय पर कुछ पत्रकारों से चर्चा हुई तो उनका कहना था कि लगातार हो रहे वीआईपी कार्यक्रमों से भी पब्लिक परेशान हो गई है क्योंकि अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों से जो लोग लाये जाते हैं वे लगभग सभी पार्टियों की सभाओं में भीड़ के रूप में शामिल होते हैं। अपने जरूरी कामों को छोड़कर भूखे प्यासे उन्हें उन कार्यक्रमों में शामिल होना पड़ता है। खाना तो उन्हें मिलता है लेकिन उसका कोई समय नहीं होता। पत्रकारों ने भी कहा कि कल की उदासीन भीड़ को देखते हुए भीतराघात होने संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

बरहहाल कारण जो भी रहा हो लेकिन कल की ख़ामोशी को कांग्रेस को हल्के में नहीं लेना चाहिए। कहीं ना कहीं एक अजीब सी आहट है जिसे कांग्रेस पार्टी को समझना चाहिए। यदि इसी तरह उत्साह की कमी रही तो बस्तर की 12 सीटों पर काबिज होने का कांग्रेस का सपना अधूरा रह सकता है।