जगदलपुर। संसदीय सचिव व जगदलपुर विधायक रेखचंद जैन ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी व वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर नगरनार स्टील प्लांट के लिए वर्तमान में संचालित बोली से प्रसिध्द उद्योगपति गौतम अदाणी व उनकी किसी भी कंपनी/ फर्म को बाहर रखने की मांग की है। साथ ही, बस्तर क्षेत्र के 40 लाख लोगों की भावनाओं का सम्मान करने का सुझाव देते निर्माणाधीन स्टील प्लांट का संचालन किसी भी गैर सरकारी संस्था को न देने की मांग की है।
10 फ़रवरी 2023 को भेजे पत्र में जगदलपुर विधायक व संसदीय सचिव श्री रेखचंद जैन ने लिखा है कि 24 जनवरी को अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च के द्वारा उद्योगपति गौतम अदाणी की व्यापारिक कंपनियों को लेकर जो खुलासा किए गए हैं, उससे न केवल विश्व में उनकी रैकिंग घटी है अपितु भारत की प्रतिष्ठा भी प्रभावित हो रही है। श्री गौतम अदाणी, उनके संबंधियों व कंपनियों को लेकर रोजाना ही नए- नए खुलासे हो रहे हैं। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दल इस मामले में संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग को लेकर आन्दोलित हैं। श्री अदाणी की कंपनियों में नियम व प्रक्रिया विरुद्ध भारतीय स्टेट बैंक समेत अन्य सरकारी बैंकों व भारतीय जीवन बीमा निगम से भारी रकम निवेशित करने के आरोप भी लग रहे हैं। इन सब आरोपों के परिप्रेक्ष्य में नगरनार स्टील प्लांट के लिए होने वाली बोली से उनसे सम्बद्ध कंपनियों को पृथक करना सर्वथा उपयुक्त होगा।
समाचार पत्र के माध्यम से यह ज्ञात हुआ है कि स्टील प्लांट संचालन के लिए पांच कंपनियों ने रुचि दिखाई है। इसमें श्री गौतम अदाणी की कंपनी/ फर्म का नाम भी सम्मिलित है। सम्बन्धित समाचार पत्र की छायांकित प्रति संलग्न है। साथ ही, इस पत्र के माध्यम से यह भी निवेदन है कि बस्तर जिला के नगरनार में एनएमडीसी द्वारा स्थापित किए जाने वाले स्टील प्लांट का संचालन किसी भी निजी क्षेत्र को न दिया जाए। चूंकि वर्ष 2002 व उसके पश्चात अलग-अलग समय में स्टील प्लांट के लिए अधिग्रहित भूमि क्षेत्रीय किसानों ने इस उम्मीद से दी थी कि इस स्थान पर सार्वजनिक उपक्रम संचालित स्टील प्लांट की स्थापना होगी। नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में केंद्र सरकार के विनिवेशीकरण की नीति से बस्तर क्षेत्र की 40 लाख जनता स्वयं को ठगा महसूस कर रही है। इस प्लांट का संचालन गैर सरकारी क्षेत्र को देने की प्रक्रिया को बस्तर के लोग व क्षेत्रीय जनता के साथ भू- प्रभावित कृषक स्वयं के साथ किए जाने वाले विश्वासघात के रूप में देख रहे हैं। यदि ऐसा किया जाता है तो जन आंदोलन होना तय है।