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किसान आंदोलन में हिस्सा लेती महिला किसानों का दस्तावेजों में कोई जिक्र भले ही न मिले पर ये बड़े प्रोटेस्ट का हैं हिस्सा,अपने घर और चूल्हा-चौका सड़कों पर ही बनाने को हैं तैयार

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नई दिल्ली। भारत की महिलाएं अब बहुत सशक्त हो गई हैं। आज की महिलाएं ना सिर्फ़ अपने समुदाय के लिए बल्कि अपने अधिकारों के लिए सड़क की लड़ाई लड़ रही हैं। आज कृषि बिलों के ख़िलाफ़ गाँव-गाँव से राजधानी दिल्ली तक अपने अधिकारों के लिए बड़ी शिद्दत से सफ़र तय करने वालीं महिलाएं मुखर दिखीं।

वो समय गया जब औरतें सबकुछ चुपचाप सह लेती थीं लेकिन अब वे बदलाव का हिस्सा बन रही हैं। वे कभी शांत प्रदर्शनकारी होती हैं तो कभी सरकारों से लोहा लेतीं, पुलिस की लाठियों का मुक़ाबला करतीं मज़बूत महिलाएं होती हैं। महिलाओं की ये ताक़त अब सोशल मीडिया पर भी पहचान बना रही है। वे घर से बाहर निकलकर आ रही हैं।

बीते दस दिनों से दिल्ली की सीमा पर तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ लाखों की संख्या में किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। दिल्ली की सीमा पर डटे इन किसानों के घर की महिलाएं भी अब तैयार हैं और कहती हैं कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वो प्रदर्शन करने दिल्ली पहुँच जाएँगी।

दिल्ली हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रही महिलाओं का कहना है कि अगर हमारे किसान भाई ही गाँवों में नहीं रहेंगे तो हम यहाँ रह कर क्या करेंगी? हम उनके साथ ही खड़े रहेंगे। अगर हमारे किसान भाई ही गाँवों में नहीं रहेंगे तो हम यहाँ रह कर क्या करेंगे? हम उनके साथ ही खड़े रहेंगे। इसके लिए चाहे हमें अपने घर सड़कों पर ही क्यों न बनाने पड़ें। हम चूल्हा चौका भी वहीं लगा लेंगे।

पंजाब और हरियाणा की इन महिलाओं को प्रोटेस्ट में मुश्किलें तो हैं पर इनके इरादे बुलंद हैं। ये वो महिला किसान हैं जिनका आंकड़ों और दस्तावेजों में कोई जिक्र भले ही न मिले पर ये सच कि ये पुरुषों की तुलना में ज्यादा घंटे खेतों में काम करती हैं। सड़कों पर उतरकर ये महिला किसान अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं, सरकार से सवाल कर रही हैं। पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर इस बड़े प्रोटेस्ट का हिस्सा हैं। ये सिर्फ भीड़ में शामिल नहीं हैं, इन्हें अच्छे से पता है कि 500-1000 किलोमीटर चलकर ये दिल्ली तक क्यों आयी हैं?