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दहेज और यौन अपराधों में FIR से पहले सुबूत की जांच अनिवार्य करने की याचिका दायर

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सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर दहेज और यौन अपराध जैसे गंभीर आरोपों से जुड़े मामलों में प्रारंभिक जांच को अनिवार्य बनाने का अनुरोध किया गया है। कहा गया है कि इन मामलों में सिर्फ शिकायतों के आधार पर प्राथमिकी दर्ज नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग भी की गई है।

याचिका में कहा गया है कि दहेज और यौन अपराध जैसे गंभीर आरोपों वाले मामलों में केवल शिकायत के आधार पर पूरे परिवार के सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की जानी चाहिए। प्रथम दृष्टया सुबूत स्थापित करने के लिए प्रारंभिक जांच को अनिवार्य शर्त बनाया जाना चाहिए।

याचिकाकर्ता ने कहा है कि अतुल सुभाष से जुड़ी हालिया घटना ने सभी को गहराई से प्रभावित किया है और हमारी कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। यह घटना हमें इस बात पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करती है कि क्या महिलाओं को दिए गए अधिकारों का जिम्मेदारी से उपयोग किया जा रहा है या उनका दुरुपयोग उत्पीड़न के साधन के रूप में किया जा रहा है।

ऐसे अधिकारों का दुरुपयोग एक ऐसा हथियार बन सकता है, जो गंभीर मानसिक और भावनात्मक नुकसान पहुंचाता है और लोगों को निराशा की ओर ले जाता है। याचिकाकर्ता ने समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन की भी मांग की है। कहा है कि इस तात्कालिक समस्या का समाधान समान नागरिक संहिता के माध्यम से भी किया जा सकता है, क्योंकि पर्सनल लॉ में गुजारा भत्ता और इसकी राशि का मुद्दा तय नहीं है।