कार्तिक मास भक्तों के लिए दीप आराधना का खास महत्व रखता है. दीप को कैसे जलाना चाहिए? किस प्रकार के तेल का उपयोग करना चाहिए? इन तेलों का महत्व क्या है? चित्तूर जिले के पुजारी श्रीनिवास स्वामी ने लोकल 18 के साथ इस विषय पर विस्तार से चर्चा की. दीप को जीवात्मा का प्रतीक और परमात्मा का रूप माना जाता है. इसलिए देवता की पूजा से पहले दीप जलाया जाता है. हिंदू परंपरा के अनुसार, किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत दीप जलाने से करना पवित्र माना जाता है.
दीप जलाने के लाभ
जहां रोज दीप जलाया जाता है, वहां सुख-समृद्धि, ज्ञान और विकास होता है. साथ ही, अपशकुन दूर रहते हैं. श्रीनिवास स्वामी बताते हैं कि दीप आराधना दो कुंडों में करनी चाहिए. एक कुंड में गाय का घी और दूसरे कुंड में तिल का तेल डालकर दीप जलाने से जल्दी शुभ परिणाम मिलते हैं.
दीप में किस तेल का उपयोग करें
बाजार में कई प्रकार के तेल उपलब्ध हैं, लेकिन हिंदू परंपरा के अनुसार, दीप आराधना के लिए गाय का घी और तिल का तेल सर्वोत्तम माने जाते हैं. श्रीनिवास स्वामी बताते हैं कि दीप जलाने के लिए एक ही बाती का उपयोग नहीं करना चाहिए, कम से कम दो बातियों का उपयोग करना चाहिए. पुरुष दीप जलाते समय तीन बातियों का उपयोग करें तो अधिक शुभ होगा, वहीं महिलाएं एक कुंड में 5 बातियां और दूसरे कुंड में 5 बातियां रखें, कुल मिलाकर 10 बातियां जलाना शुभ होता है.
दीप जलाने की दिशा
दीप को उत्तर दिशा में जलाने से धन की प्राप्ति होती है और पूर्व दिशा में जलाने से कीर्ति और प्रतिष्ठा बढ़ती है. श्रीनिवास स्वामी ने बताया कि दीप आराधना के समय पूजा घर में बड़े विग्रह नहीं रखने चाहिए, बल्कि छोटे विग्रह ही रखने चाहिए. नए वस्त्र पर चावल रखकर, उस पर तामलपत्र रखकर, विग्रह को उस पर रखकर पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है.
पूजा का महत्व
जहां दीप रोज जलता है, वहां सभी शुभ फल प्राप्त होते हैं और लक्ष्मी का वास होता है. श्रीनिवास स्वामी के अनुसार, दीप आराधना करने से भक्तों को भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है.