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अगर घर की इस दिशा में है वास्तु दोष तो संतान प्राप्ति में होगी बाधा, जानें इसके आसान उपाय

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अक्सर जन्मकुंडली में सब कुछ अच्छा होते हुए भी शादी के कई सालों बाद भी घर में संतान का योग नहीं बनता है. ज्योतिष के अलावा भी कुछ ऐसे संयोग हैं, जिनकी वजह से अक्सर घरों में बच्चे नहीं होते या होने से पहले या होकर खत्म हो जाते हैं. इसके लिए घर का वास्तु भी काफी हद तक ज़िम्मेदार होता है. आइए जानते हैं कौन से ऐसे वास्तु कारण हैं, जो ये समस्या उत्पन्न करते हैं, साथ ही जानेंगे इसके आसान उपाय .

    घर के ईशान कोण यानि उत्तर- पूर्व दिशा में कोई भी वास्तु दोष जैसे भारी निर्माण, ईशान कोण का कटा होना या ऊँचा होना, सीढियाँ, टॉलेट आदि का होना संतान सुख होने में रुकावट डालता है. ईशान कोण के पूरी तरह से अवरुध होने पर संतान प्राप्ति में बड़ी बाधा आती है. अतः ईशान कोण में कोई भी वास्तु दोष है तो सर्वप्रथम उस दोष का उपाय योग्य वास्तुकार से परामर्श करके अवश्य करें.
    मुख्य द्वार की स्थिति का संतान प्राप्ति पर बहुत गहरा प्रभाव है. घर का मुख्य द्वार, पश्चिम के पुष्पदंत पद ( पद संख्या 20) या उत्तर दिशा में मुख्य पद (पद संख्या 27) या उत्तर में ही सोम/कुबेर पद (पद संख्या 29) में खोले जाने पर पुत्र संतान होने की सम्भवना प्रबल रूप से बढ़ जाती है. घर का मुख्य द्वार अगर पूर्व दिशा के पर्जन्य पद (पद संख्या 2) में खुलता हो तो कन्यायें जन्म लेती हैं. अगर बताई गई दिशा में द्वार बनाने के लिए जगह उपलब्ध नहीं है तो योग्य वास्तुकार के निरीक्षण में उपरोक्त दिशाओं में वर्चुअल द्वार बनाया जा सकता है.

यह करें उपाय :

ज्योतिष उपाय – शास्त्रों में हरिवंश पुराण एवं गोपाल संतान नामक स्त्रोत का पाठ संतान प्राप्ति के लिए फलदायी बताया गया है. बाल कृष्णा की आराधना भी संतान प्राप्ति के लिए फलदायी है. इसके अलावा, बृहस्पति ग्रह संतान का नैसर्गिक कारक है. बृहस्पति को बल दें.

वास्तु उपाय:

    हाथी फर्टिलिटी का कारक है. जो भी दंपत्ति संतान प्राप्ति के इच्छुक हैं, उन्हें हाथी का चित्र अपने बेडरूम में लगाना चाहिए.
    कमरे में फल इत्यादि रखें मुख्यतः अनार और जौ फ़र्टिलिटी के कारक हैं.
    पत्नी को पति की बायीं दिशा में सोना चाहिए.
    ध्यान रहे पति-पत्नी का बिस्तार छत की बीम के नीचे नहीं होना चाहिए.
    नवदंपत्ति जो नया परिवार शुरू करना चाहते हैं उनके लिए वायव्या (NW) कमरा आदर्श स्थान है. पर गर्भाधन के बाद दम्पत्ति को दक्षिण/ दक्षिण-पश्चिम भाग के शयन कक्ष में चला जाना चाहिए ताकी गर्भ सुरक्षित रहे.