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इंग्लैंड में रहकर भी नहीं भूले छठ की परंपरा, आरा में आकर किया सूर्य उपासना

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छठी मईया की महिमा देश ही नहीं विदेश में रह रहे प्रवासियों के मन में भी हलचल पैदा कर देता है। जब बात बिहार की सांस्कृतिक परंपरा छठ पूजा की हो तो एक बिहारी अपने आप को कैसे रोक सकता है। ऐसा ही कुछ उदाहरण देखने को मिला उदवंतनगर प्रखंड के नवादावेन गांव में, जहां 14 साल बाद एनआरआइ परिवार छठ पर्व के लिए अपने गांव लौटा।

इंग्लैंड से एक एनआरआइ परिवार अपनी सांस्कृतिक समृद्धि व परंपराओं को देखने तथा अपने बच्चों को संस्कार से रूबरू कराने उदवंतनगर प्रखंड के नवादावेन गांव पहुंचा है। ये परिवार 14 वर्षों बाद अपने वतन लौटा है और दीपावली व छठ पूजा मनाई। नवादावेन गांव निवासी रजनीश कुमार सिंह की तरह अनेकों प्रवासी लोक आस्था का महापर्व छठ में सूर्य उपासना करने अपने गांव पहुंचे हैं।

लंदन में एक्शन टू डू संस्था के माध्यम से वंचित व कमजोर बच्चों को शिक्षा देने वाली मिताली ने बताया कि मायके में हमारी मां पूरे परिवार के साथ छठ करती थीं। पूरे घर में उत्सवी माहौल होता था। हम 
लोगों ने बचपन से छठ को महसूस किया है। भारत में जैसे ही दुर्गा पूजा बीतता है, विदेश में रह रहे प्रवासियों के मन में छठ पूजा की याद सताने लगती है।

वीडियो कॉल से जुड़ देखती थी छठ पूजा

हर वर्ष आ नहीं सकती तो वीडियो कॉल के माध्यम से घर की पूजा से जुड़ती थीं। शादी के बाद मैं लंदन में पति और बच्चों के साथ रहने लगी। छठ के समय आज भी शारदा सिन्हा का छठ गीत कानों में स्वतः गूंज उठता है।

मिताली ने बताया कि कई बार प्रयास किया लेकिन भारत नहीं आ सकी। इस बार अपने ससुराल दीपावली के पहले लौटी हूं। अपने स्वजनों के साथ छठी मैया की पूजा के साथ ही इसका सुखद अनुभव करना चाहती हूं तथा बच्चों को अपनी परंपरा से अवगत कराना चाहती हूं।

छठी मइया के बुलावे पर पहुंचे देश

लंदन में फाइनेंस सेक्टर में काम करने वाले एनआरआई रजनीश कुमार सिंह ने बताया कि इस बार छठी मैया ने अपने वतन बुलाया है। अपनी महान परंपरा को देखने के लिए आंखें तरस रही थी। 14 वर्षों से हम परिवार सहित स्थाई रूप से लंदन में रहते हैं। हम लोग अब लंदन वाले हो गए हैं,लेकिन हम आज भी सभ्यता और संस्कृति से जुड़े हैं।

बच्चों के दिखाना चाहते हैं संस्कृति की झलक

हमारे दो बच्चे हैं, बड़ा बेटा विस्तृत तो बिल्कुल हिंदी और भोजपुरी नहीं बोल सकता, लेकिन छोटा बेटा विराज थोड़ी बहुत हिंदी समझता और बोलता है। लंदन में रहते-रहते बच्चे अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, इसलिए मैं और मिताली बच्चों को अपनी महान सांस्कृतिक परंपरा की पहचान कराने अपने पैतृक गांव नवादावेन आए हैं। बच्चों ने दीपावली देखी अब छठ पूजा में शामिल होंगे। उसके बाद लंदन चले जाएंगे। बच्चे पूजा की हर विधि में शामिल हो रहे हैं और बहुत खुश हैं।

बिहार में NRI को विश्वसनीय प्लेटफॉर्म की जरूरत

वहीं रजनीश ने बताया कि एनआरआई का बिहार में कोई कार्ड नहीं है। यहां राज्य सरकार को पता नहीं है कि कितने बिहारी दूसरे देशों में काम करते हैं। अन्य प्रदेशों की तरह कोई एनआरआइ अफेयर्स डिपार्टमेंट भी नहीं है। एनआरआइ भी बिहार प्रदेश के विकास में भूमिका निभाना चाहते हैं, लेकिन एक विश्वसनीय प्लेटफॉर्म की जरूरत है।