नई दिल्ली। महाराष्ट्र में गत दो वर्षों में ऐसे 700 मानसिक रोगियों को जो सड़कों पर लावारिस भटक रहे थे, कोर्ट के जरिए अस्पतालों में दाखिल करा चुके महाराष्ट्र की स्माइल प्लस फाउंडेशन के अध्यक्ष योगेश मालखारे ने सवाल उठाया है कि क्या हमारे संविधान में इन अभागों को कोई अधिकार नहीं है? राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम रिवाइज हो चुका है, लेकिन यदि अब भी मानसिक पीड़ित व्यक्ति सड़कों पर आवारा भटकते हुए दिख रहा है तो यह सवाल उठना लाजिमी है।
करोड़ों लोग इस संस्थान से जुड़ रहे हैं
महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों में स्माइल प्लस फाउंडेशन के साथ आज बड़ी संख्या में आम लोग जुड़ रहे हैं। ऐसे रोगी को देखते ही लोग संस्था के हेल्पलाइन नंबर पर सूचना देते हैं। सूचना मिलते ही उस शहर में मौजूद संस्था के वालंटियर मिनटों में उस मरीज तक पहुंच कर उसे अपनी देखरेख में ले लेते हैं।
मरीज का रखते हैं पूरा ख्याल
इसके बाद पुलिस स्टेशन से लेकर कोर्ट की कार्रवाई पूरी कर मरीज को मनोरुग्णालय में दाखिल कराते हैं। यही नहीं, इसके बाद भी उसकी खैरखबर रखी जाती है। योगेश बताते हैं, दो-तीन माह के इलाज में ही मरीज अपना नाम-पता बताने की स्थिति में आ जाता है। तब हम उसके रिश्तेदार की खोज शुरू कर देते हैं।