नई दिल्ली। भले ही चीन के साथ हुए समझौते से एलएसी की स्थिति बेहतर हुई हो, लेकिन भारत हमेशा सावधान रहेगा। इसके लिए भारत अब एलएसी पर छोटे टैंक जोरावर तैनात करेगा। इसके लिए डीआरडीओ तथा एल एंड टी द्वारा संयुक्त रूप से विकसित हल्के टैंक जोरावर के ऊंचे क्षेत्रों में परीक्षण जल्द शुरू होंगे। सेना ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। ये टैंक चीन से मुकाबले के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए हैं। इन्हें एलएसी पर तैनात किया जाना है। टैंक के पहले चरण के परीक्षण पिछले माह हो चुके हैं तथा अब ऊंचे और ठंडे इलाकों में परीक्षण होने हैं। आमतौर पर टैंकों का वजन 40-50 टन के बीच होता है।
सैनिकों की वापसी अंतिम चरण में
बता दें कि भारत और चीन के बीच समझौते के बाद पूर्वी लद्दाख में टकराव बिंदुओं डेमचोक और देपसांग से सैनिकों की वापसी अंतिम चरण में है। समझौतों के अनुपालन में भारतीय सैनिकों ने इन क्षेत्रों से अपने उपकरणों को पीछे लाना शुरू कर दिया। सेना के सूत्रों ने पिछले सप्ताह कहा था कि समझौता केवल इन दो टकराव बिंदुओं के लिए हुआ था और अन्य क्षेत्रों के लिए बातचीत अब भी जारी है। यह भी बताया कि पिछले हफ्ते शुरू हुई सैन्य वापसी पूरी होने के बाद इन क्षेत्रों में गश्त शुरू हो जाएगी।
ये देश में बने सबसे हल्के टैंक
जोरावर टैंकों को डीआरडीओ की चेन्नई स्थित प्रयोगशाला कांबेट व्हीकल्स रिसर्च एंड डवलपमेंट स्टेबलिशमेंट (सीवीआरडीई) ने तैयार किया है। ये देश में बने सबसे हल्के टैंक होंगे। सूत्रों के अनुसार, अभी इनका वजन 25 टन के करीब है तथा नए संस्करणों में इसे और कम करने के प्रयास हैं। वजन कम होने से यह टैंक बिना सड़क वाली जगह पर 35/40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकते हैं। जबकि सड़क पर इनकी अधिकतम रफ्तार 70 किलोमीटर प्रति घंटा है। भारत के पास जो टैंक सर्वाधिक इस्तेमाल हो रहे हैं, उनमें टी-72 का 41 टन और टी-90 का 46 टन वजन है। जोरावर का वजन 25 टन से भी कम है। इससे इन्हें न सिर्फ ऊंचे इलाकों में तैनात करना आसान है, बल्कि प्रदर्शन भी बेहतर हो जाता है। चीन ने एलएसी के निकट इसी प्रकार के हल्के टैंक तैनात कर रखे हैं जिसका अहसास भारत को 2020 में हुए टकराव के दौरान हुआ। डीआरडीओ और एलएंटी को ऐसे 354 टैंकों के निर्माण का कांट्रेक्ट दिया गया था। बीते सितंबर में राजस्थान के मरुस्थलीय इलाके में इसके पहले चरण के परीक्षण किए गए हैं जो सफल रहे हैं। डीआरडीओ का दावा है कि वे सभी पैरामीटरों पर सफल रहे हैं। लेकिन अब दूसरे चरण के परीक्षण ऊंचे इलाकों में सर्द मौसम में होने हैं।