भारत-चीन सीमा पर सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
भारतीय सेना के बाद अब चीन की तरफ से भी इस बात की पुष्टि कर दी गई है। इसके मुताबिक मंगलवार को डेपसैंग के मैदानी इलाकों और डेमचोक में सैनिक पीछे हटे।
चीनी सेना ने बयान में कहा है कि सबकुछ अच्छे तरीके से चल रहा है। यह बयान उस समझौते के चार दिन के बाद आया है, जिसमें दोनों देश गश्त के लिए राजी हुए हैं।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने शुक्रवार को बीजिंग में कहाकि सीमा पर हालात को लेकर हुई बातचीत के मुताबिक चीन और भारत के सैनिक प्रॉसेस फॉलो कर रहे हैं।
नई दिल्ली में चीनी दूतावास के प्रवक्ता ने यह बात शनिवार को एक्स पर पोस्ट की।
सेना के सूत्रों का कहना है कि यह प्रक्रिया 28-29 अक्टूबर तक पूरी हो जाने की उम्मीद है। हालांकि उन्होंने यह भी कहाकि इन इलाकों के हालात और मौसम को देखते हुए कोई समय-सीमा तय नहीं की गई है।
फिलहाल दोनों पक्ष इन जगहों पर पिछले साढ़े चार साल में बने अस्थायी निर्माणों को भी हटाने में लगे हैं। इनमें टेंट और शेड्स हैं, जिन्हें उपकरण, वाहन और सेना की टुकड़ियों के ठहरने के लिए बनाया गया था।
सूत्रों के मुताबिक मौजूदा समझौता केवल देपसांग मैदानों और डेमचोक क्षेत्रों में गश्त के अधिकारों को बहाल करने पर है। सैनिकों की वापसी केवल इन्हीं दो बिंदुओं पर हो रही है। यहां की समस्याएं काफी पुरानी हैं और मामला 2020 में चीन की घुसपैठ से पहले का है।
गौरतलब है कि चीनी सेना ने देपसांग मैदानों में 10 से 13 पैट्रोलिंग प्वॉइंट्स तक भारत की पहुंच को खत्म कर दिया था। वहीं, डेमचोक इलाके में चीनी सैनिक चारडिंग नाले पर डेरा जमाए बैठे थे।
यह समझौता बेहद महत्वपूर्ण है। वजह, चीनी पक्ष एक साल पहले तक देपसांग प्लेन्स और डेमचोक पर बात तक करने के लिए तैयार नहीं था।
हालांकि वह, पीपी 14 (गलवान घाटी), पीपी 15 (हॉट स्प्रिंग्स), पीपी 17ए (गोगरा), पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिण तट पर डिसइंगेजमेंट पर सहमत था।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने समझौते का श्रेय सेना को दिया, जिसने बहुत ही अकल्पनीय परिस्थितियों में काम किया। जयशंकर ने कहाकि अगर आज हम यहां तक पहुंचे हैं, तो इसका एक कारण यह है कि हमने अपनी बात पर अड़े रहने और अपनी बात रखने के लिए बहुत दृढ़ प्रयास किया है। सेना देश की रक्षा के लिए बहुत ही अकल्पनीय परिस्थितियों में एलएसी पर मौजूद थी। सेना ने अपना काम किया तथा कूटनीति ने भी अपना काम किया।
विदेश मंत्री ने कहाकि सितंबर 2020 से भारत चीन के साथ समाधान निकालने के लिए बातचीत कर रहा था। उन्होंने कहाकि इसके बाद एक बड़ा मुद्दा यह है कि आप सीमा का प्रबंधन कैसे करते हैं और सीमा समझौते को लेकर बातचीत कैसे करते हैं।
अभी जो कुछ भी हो रहा है, वह पहले चरण से संबंधित है, जो कि सैनिकों की वापसी है। विदेश मंत्री ने कहा कि इस समाधान के विभिन्न पहलू हैं। उन्होंने कहा कि सबसे जरूरी बात यह है कि सैनिकों को पीछे हटना होगा, क्योंकि वे एक-दूसरे के बहुत करीब हैं और कुछ घटित होने की आशंका थी।
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत और चीन 2020 के बाद कुछ स्थानों पर इस बात पर सहमत हुए कि कैसे सैनिक अपने ठिकानों पर लौटेंगे, लेकिन एक महत्वपूर्ण बात गश्त से संबंधित थी।
जयशंकर ने कहाकि गश्त को बाधित किया जा रहा था और हम पिछले दो वर्षों से इसी पर बातचीत करने की कोशिश कर रहे थे।
इसलिए 21 अक्टूबर को जो हुआ, वह यह था कि उन विशेष क्षेत्रों देमचोक और डेपसांग में हम इस समझ पर पहुंचे कि गश्त फिर से उसी तरह शुरू होगी, जैसी पहले हुआ करती थी।
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास से सैनिकों की वापसी और गश्त को लेकर समझौता हुआ था, जो चार साल से अधिक समय से जारी गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ी सफलता है।
जून 2020 में गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच भीषण संघर्ष के बाद संबंधों में तनाव आ गया था। यह पिछले कुछ दशकों में दोनों पक्षों के बीच सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष था।
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