भोपाल । भाजपा ने एक अहम फैसला लेते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को हरियाणा का केंद्रीय पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। इस जिम्मेदारी में उनके साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हैं। यह पहली बार है जब किसी मुख्यमंत्री को अमित शाह के साथ इतनी महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई है। पार्टी का यह कदम राष्ट्रीय राजनीति में मोहन यादव के बढ़ते कद और यादव वोटरों पर केंद्रित रणनीति का स्पष्ट संकेत माना जा रहा है।
मोहन यादव का कद बढ़ा, राष्ट्रीय नेता के रूप में उभारने की तैयारी
मोहन यादव की यह नियुक्ति भाजपा की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है, जिसमें उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करना और यादव समुदाय के बीच उनकी पहचान को मजबूत करना शामिल है। पिछले कुछ समय में मोहन यादव को कई बड़े चुनावी अभियानों में शामिल किया गया है, विशेष रूप से यूपी और बिहार जैसे राज्यों में, जहां यादव वोटरों का प्रभाव निर्णायक होता है। हरियाणा में भी भाजपा ने अप्रत्याशित जीत हासिल की, जिसमें मोहन यादव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने यादव बहुल क्षेत्रों में पार्टी के प्रचार का नेतृत्व किया और 29 में से 21 सीटों पर जीत हासिल की। इस प्रदर्शन ने पार्टी में उनके कद को और बढ़ा दिया है, जिसके बाद उन्हें हरियाणा का केंद्रीय पर्यवेक्षक बनाया गया।
यूपी-बिहार में यादव वोटरों पर नजर
मोहन यादव की नई जिम्मेदारी के कई मायने हैं। सबसे अहम यह है कि भाजपा अब उन्हें यूपी और बिहार में यादव वोटरों के बीच एक प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित करना चाहती है। इन राज्यों में यादव समुदाय पारंपरिक रूप से समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का समर्थन करता रहा है, लेकिन मोहन यादव के जरिए भाजपा अब इस समीकरण को बदलने की कोशिश कर रही है। यूपी में अखिलेश यादव और बिहार में तेजस्वी यादव के कद के मुकाबले मोहन यादव को खड़ा करना भाजपा की दीर्घकालिक योजना का हिस्सा है। यूपी-बिहार में यादव वोटरों की भूमिका निर्णायक होती है और भाजपा अब मोहन यादव को इन वोटरों के बीच प्रमुख चेहरा बनाना चाहती है।
भाजपा के लिए बड़ा संदेश
मोहन यादव को अमित शाह के साथ केंद्रीय पर्यवेक्षक बनाए जाने का भाजपा के भीतर भी एक बड़ा संदेश है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पार्टी नेतृत्व उन्हें केवल एक क्षेत्रीय नेता तक सीमित नहीं रखना चाहता, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत नेता के रूप में उभारने की योजना बना रही है। मोहन यादव के माध्यम से भाजपा यादव समुदाय, ओबीसी और कृष्णभक्त समुदाय के बीच अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। उनकी नियुक्ति के साथ ही पार्टी के भीतर उन्हें एक मजबूत और प्रभावशाली नेता के रूप में देखा जाने लगा है, जो केवल राज्य की सीमाओं तक सीमित नहीं रहेंगे।
आने वाले चुनावों में अहम भूमिका
मोहन यादव की इस नई जिम्मेदारी के बाद, यूपी और बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों में उनकी भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगी। भाजपा को उम्मीद है कि उनके नेतृत्व में पार्टी यादव वोटरों के बीच अपनी पैठ बना सकेगी और सपा व आरजेडी के कोर वोट बैंक में सेंध लगा सकेगी। इस कदम से यह स्पष्ट है कि मोहन यादव अब पार्टी के लिए केवल एक राज्य के नेता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में एक अहम चेहरा बनने जा रहे हैं। उनका कद और जिम्मेदारी दोनों बढ़ चुके हैं, और भाजपा उनके जरिए अपनी आगामी चुनावी रणनीतियों को अमलीजामा पहनाने की पूरी तैयारी कर चुकी है।
एमपी में 100 फीसदी स्ट्राइक रेट
मोहन यादव ने सीएम की कुर्सी संभालने के बाद एमपी में भी जबरदस्त कमाल किया है। लोकसभा चुनाव के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि मध्य प्रदेश में बीजेपी 29 की 29 सीटें जीत गई है। यह सब कुछ तब हुआ, जब मोहन यादव को पद संभाले हुए मात्र छह महीने हुए थे। अभी मध्य प्रदेश की राजनीति बीजेपी के अंदर भी उनका ही सबसे अधिक उभार है।