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इजरायल को हर हाल में सपोर्ट करता है अमेरिका, मिडिल-ईस्ट की मजबूरी या फिर जरूरत; क्या वजह…

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पिछले साल 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास के हमले के बाद से मिडिल-ईस्ट में लगातार युद्ध जारी है। इजरायल ने पिछले एक साल में लगातार गाजा को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया है।

दुनिया भर में मानवता की दुहाई देने वाला अमेरिका इन सब हमलों की केवल निंदा करके एक पिता और अच्छे दोस्त की तरह इजरायल सारे गुनाहों को नजरअंदाज करता दिखाई देता है।

एपी की रिपोर्ट के मुताबिक इस युद्ध के दौरान अमेरिका ने इजरायल की करीब 18 बिलियन डॉलर की मदद की है।  इस मदद के अलावा अमेरिका ने इजरायल में पिछले एक साल में 4.86 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त सैन्य निवेश किया है।

इन सब के बावजूद अमेरिका लगातार इजरायल को हमला करने की कोशिश करता है लेकिन इजरायल यह जानते हुए कि अमेरिका हर हाल में उसका सपोर्ट करेगा वह अपनी योजना के अनुसार अपने दुश्मनों पर हमला करता है।

हाल ही में इजरायल की  सुरक्षा को लेकर अमेरिका के वर्तमान विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन ने कहा कि हम हर हाल में इजरायल की सुरक्षा करेंगे।

अमेरिका का इजरायल को दिए बिना शर्त समर्थन के पीछे एक नहीं कई कारण नजर आते हैं। अमेरिका की मजबूत यहूदी लॉबी, अमेरिकी राजनेताओं के परिवारों से यहूदी परिवारों के रिश्ते और मिडिल ईस्ट में अमेरिकी हितों की रक्षा करने वाला इजरायल इनमें सबसे बड़े कारण हैं।

यहां तक की अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन के तीनों बच्चों की शादी यहूदी परिवारों में हुई है वहीं कमला हैरिस के पति भी यहूदी ही है।

लेकिन इससे इतर यहूदी परिवारों का अमेरिका की आंतरिक राजनीति में जबरदस्त प्रभाव है, जो कि अमेरिका को और ज्यादा प्रो इजरायल होने के लिए प्रेरित करता है।  

आइए जानते हैं इजरायल और अमेरिका के मजबूत रिश्तों के इतिहास को..

इजरायल को 11 मिनट में देश के रूप यूएस ने दी मान्यता

14 मई 1948 को स्टेट ऑफ इजरायल की घोषणा होने के साथ ही केवल 11 मिनट के अंदर अमेरिका के 33 वें राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने प्रेस रिलीज जारी कर इजरायल को एक देश के रूप में मान्यता दे दी थी।

इस बात को लेकर एक ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि ट्रूमैन खुद एक यहूदी विरोधी व्यक्ति थे, लेकिन इस घोषणा के कुछ महीने पहले ही ऐडी जैकबसन( एक अमेरिकी यहूदी व्यापारी) के साथ हुई मीटिंग में उन्होंने बनने वाले स्टेट ऑफ इजरायल को अपना समर्थन देने की घोषणा कर दी थी।

हालांकि इजरायल को एक देश के रूप मे स्वीकार करने के बाद भी अमेरिका ने इसको अपना ज्यादा समर्थन नहीं दिया। 1956 में जब इजरायल ने अपने पश्चिमी मित्रों के साथ मिलकर स्वेज नहर पर कंट्रोल के लिए इजिप्ट पर हमला कर दिया।

लेकिन अमेरिका इन सभी के खिलाफ खड़ा हो गया इससे इन सभी देशों की सेनाओं को वहां से पीछे हटना पड़ा। 1960 में इजरायल ने जब न्यूक्लियर बनाने की कोशिश की थी तो अमेरिका ने इसका मुखर होकर विरोध किया था।

इजरायल से अमेरिका की दोस्ती की शुरुआत

1967 में अरब देशों और इजरायल के बीच हुए युद्ध के बाद अमेरिका को इजरायल के रूप में मिडिल ईस्ट में अपना एक पार्टनर दिखा।

क्योंकि इजरायल एक मजबूत लोकतंत्र के साथ साथ पश्चिमी देशों का मुख्य सहयोगी भी था। 1973 में जब इजरायल के साथ अरब देशों के साथ एक बार फिर से युद्ध हुआ तो अमेरिका ने इजरायल का पूरा समर्थन किया।

सैन्य साजो सामान के साथ-साथ उसने इजरायल को आर्थिक रूप से भी सहायता दी। 1979 में जब ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई और पूरे ईरान में अमेरिका विरोधी लहर चलने लगी तो अमेरिका अपनी मिडिल ईस्ट पॉलिसी में इजरायल के ऊपर और भी ज्यादा निर्भर हो गया।

इस समय तक कोल्ड वॉर अपने चरम पर था। क्षेत्र में सोवियत प्रभाव को रोकने में इजरायल ने अपनी पूरी ताकत लगाकर अमेरिकी हितों को साधा।

अमेरिका ने इजरायल को बनाया खास पार्टनर

इसके बाद तो जैसे अमेरिका और इजरायल के रिश्तों को पंख लग गए। रीगन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने तक अमेरिका हर साल इजरायल को 1.8 बिलियन डॉलर की मदद करने लगा। दोनों देश मिलकर एक साथ दुनियाभर का सैन्य साजो सामान बनाने लगे। इसके बदले में इजरायल ने अमेरिका की भरपूर मदद की।

लेबनान की राजधानी बेरूत में अमेरिकी जवानों के कैंप पर हमला करके 200 से ज्यादा सैनिकों को मार डाला गया। अमेरिका ने इसके जवाब में इजरायल को खुली छूट दे दी। कुछ ही महीनों में इजरायल की सेना ने अपना बदला लेते हुए आधे लेबनान को रौंध डाला।

इसके बाद 21 वीं सदी में अमेरिका और इजरायल के रिश्ते और भी ज्यादा मजबूती के साथ बढ़े। अमेरिका ने गोलन हाइट्स पर इजरायली दावे को स्वीकार कर लिया और यरूशलेम को इजरायल की राजधानी के रूप में भी मान लिया। 

संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका करता है इजरायल की पूरी मदद

संयुक्त राष्ट्र संघ आज की तारीख में इजरायल के गाजा और अन्य क्षेत्रों में हमलों के सामने बौना नजर आता है। क्योंकि इजरायल के खिलाफ जब भी कोई प्रस्ताव लाया जाता है तो उसके खिलाफ अमेरिका वीटो कर देता है। अब तक इजरायल को बचाने के लिए अमेरिका 50 से ज्यादा बार वीटो का प्रयोग कर चुका है।

अरब देशों से इजरायल को समर्थन दिलवाने का प्रयास करता अमेरिका

मिडिल ईस्ट में अमेरिका भले ही इजरायल को अपना साथी मानता हो लेकिन उसके पड़ोसी उसको देश के रूप में स्वीकार नहीं करते थे।

अमेरिका ने इसका भी उपाय करने की कोशिश की। सबसे पहले इजिप्ट एक समझौते के जरिए इजरायल को देश के रूप में स्वीकार करने वाला पहला देश बना।

बाद में जॉर्डन ने भी उसको देश के रूप में स्वीकार कर लिया। अमेरिका ने क्षेत्र में शांति के लिए कई बार समझौते करवाने की कोशिश भी की लेकिन विद्रोही गुटों की कार्रवाई के बाद इजरायल का बदला लेने की मंशा रखने वाली सोच ने उसके लिए परेशानी को बढ़ाने काम किया।

अमेरिका और इजरायल के रिश्तों के मजबूत होने के पीछे एक नहीं कई कारण हैं। इजरायल अपने क्षेत्र में अमेरिकी हितों की रक्षा करता है तो वहीं अमेरिका इजरायल की वैश्विक स्तर पर रक्षा करता है। अमेरिका की मजबूत यहूदी लॉबी इजरायल को एक बढ़त प्रदान करती है। प

श्चिमी देशों में यहूदी लोगों के प्रति द्वितीय विश्व युद्ध के पहले जितनी घृणा थी वह अब उतनी ही सहानुभूति में बदल गई है। यह इजरायल के प्रति उनके समर्थन को और भी ज्यादा बढ़ाता है।

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