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विधानसभा चुनाव को आंदोलनों ने किया कितना प्रभावित, वोट जाएंगे किसके पाले में ?

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जगदलपुर। छत्तीसगढ़ में यह चुनावी साल आंदोलनों के लिए याद रखा जाएगा। इन आंदोलनों और धरना प्रदर्शनों ने सरकार की नाक में दम कर रखा था। चुनाव से पहले कई संघ संगठनों ने अपनी मांगें मनवाने की कोशिश की, कुछ की मांगें मान ली गई और कुछ अभी भी सरकार से नाराज चल रहे हैं। एक ओर भाजपा ने चौथी बार सत्ता में आने पर मांगें माने जाने का आश्वासन दिया है तो वहीं दूसरी ओर विपक्ष ने भी जमकर उन मुद्दों को भुनाया है। निस्संदेह इन नाराज संघ संगठनों के वोट ने चुनाव को प्रभावित किया होगा, इस पर चर्चा करना जरूरी है।

चुनाव के पहले सरकारी कर्मचारियों ने बार-बार धरना प्रदर्शन किया और रैली निकाली। कर्मचारियों के महंगाई भत्ते और सातवें वेतनमान के एरियर्स के भुगतान की मांगों पर भी बहुत कुछ देने के बाद भी गतिरोध आचार संहिता लगने तक बना रहा।

वही दूसरी ओर शिक्षाकर्मियों ने ऐसी मुहिम छेड़ी कि सरकार को उनका संविलियन करना ही पड़ा। प्रदेश में एक लाख 80 हजार शिक्षाकर्मियों में से करीब एक लाख तीन हजार का संविलियन हो गया बाकी लगभग 75 हज़ार शिक्षाकर्मी सरकार से नाराज रहे।

कोटवार संघ, रसोइया संघ, तेंदूपत्ता फड़ मुंशी संघ जैसे और भी तमाम संगठनों ने चुनाव से पहले अपनी मांगों को मनवाने की कोशिश की थी। इन सबका क्या असर होगा यह देखना रोचक हो सकता है।

प्रदेश में डेढ़ लाख अनियमित कर्मचारियों ने आंदोलन छेड़ा लेकिन सरकार इनके आंदोलन पर चुप ही रही। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में वादा कर दिया कि उनकी सरकार आई तो सभी को नियमित कर दिया जाएगा। अब कांग्रेसी दावा कर रहे हैं कि इनके वोट तो हमें ही मिले होंगे।

चुनाव के पहले पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून समेत कई दूसरे मुद्दों पर आदिवासी भी आंदोलित रहे। आदिवासियों को अपने पक्ष में रखने की जुगत सभी दलों ने की है। प्रदेश में 33 फीसद आदिवासी हैं जो किसी भी दल की सरकार बनाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। सरकार ने आदिवासियों के हित में किए गए काम गिनाए हैं। अब देखना है कि ये किसके पाले में जाते हैं।

सबसे बड़ा आंदोलन किसानों का हुआ था। किसानों की मांग थी कि समर्थन मूल्य बढ़ाया जाए। कर्जमाफ किया जाए, बोनस दिया जाए। चुनाव से पहले सरकार ने बोनस देना शुरू किया। हालांकि विपक्ष ने किसानों को धान का समर्थन मूल्य 25 सौ देने की बात की है। किसान जिसके पाले में जाएंगे सरकार उसी की बनेगी यह तो तय ही है। कुल मिलाकर देखना यह है कि इन आंदोलनों की सरकार बनाने में क्या भूमिका होगी यह तो मतगणना का दिन ही तय करेगा।