Home छत्तीसगढ़ रेल मंत्रालय ने 10,000 इंजनों पर कवच 4.0 लगाने को मंजूरी दी

रेल मंत्रालय ने 10,000 इंजनों पर कवच 4.0 लगाने को मंजूरी दी

3
0

नई दिल्ली/बिलासपुर/रायपुर

एटीपी प्रणाली रेल परिवहन में उपयोग की जाने वाली एक सुरक्षा प्रणाली है, जिसका उपयोग ट्रेनों को सुरक्षित गति से अधिक या खतरे में सिग्नल पास करने से रोकने के लिए किया जाता है। यह स्वचालित रूप से ट्रेन की गति को नियंत्रित करता है और दुर्घटनाओं को रोकने के लिए यदि आवश्यक हो तो ब्रेक लगा सकता है।दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में भी नागपुर से झारसुगुडा मेन लाइन पर कवच की तैनाती के लिए कार्य शुरू किए गए है ।

ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम (एटीपी)
एटीपी प्रणाली आधुनिक रेलवे सिग्नलिंग सिस्टम का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो मानवीय त्रुटि के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है और ट्रेनों के सुरक्षित संचालन को सुनिश्चित करता है।

पूरे विश्व में तैनाती
अमेरिका में पॉजिटिव ट्रेन कंट्रोल (पीटीसी) शुरूआत 1980 में हुई और लगभग 30 साल बाद 2010 में इसके तैनाती के लिए नियम बनाए गए। यूरोप में यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्टम (ईटीसीएस) पर काम 1989 में शुरू हुआ था। और इसका पहला एमओयू 16 साल बाद 2005 में साइन हुआ।
भारत में मुंबई सबरबन में 1986 में आॅक्जिलरी वार्निंग सिस्टम (एडब्ल्यूएस) लगाया गया था। दिल्ली आगरा चेन्नई और कोलकाता मेट्रो में ट्रेन प्रोटेक्शन वार्निंग सिस्टम लगाया गया। नॉर्थ फ्रंटियर रेलवे में में 1,736 रूट किलोमीटर पर एंटी कोलाइजन डिवाइस का पायलट प्रोजेक्ट जुलाई 2006 में शुरू हुआ। इन सभी सिस्टम्स में कई आॅपरेशनल और टेक्निकल समस्याएं थी  फरवरी 2012 में, काकोदर कमेटी ने रिकमेंड किया कि भारतीय रेलवे को अत्याधुनिक, डिजिटल रेडियो बेस्ड सिग्नलिंग और प्रोटेक्शन सिस्टम का लक्ष्य रखना चाहिए, जो कम से कम श्वञ्जष्टस् रु-2 की कार्यक्षमता के बराबर हो और पूरे भारतीय रेलवे में तैनात हो। ऐसे में एक वैकल्पिक, रेडियो बेस्ड ट्रेन कोलाइजन अवॉयडेंस सिस्टम ' कवचझ् के विकास की परिकल्पना एक स्वदेशी, मल्टी वेंडर, फेल सेफ सिस्टम के रूप में की गई थी।

कवच का डिप्लॉयमेंट
2014-15: दक्षिण मध्य रेलवे पर 250 रूट किलोमीटर के पायलट प्रोजेक्ट सिस्टम पर इंस्टॉलेशन 7
2015-16: यात्री ट्रेनों पर पहला फील्ड परीक्षण।
2017-18: कवच स्पेसिफिकेशन वर्जन 3.2 को अंतिम रूप दिया गया।
2018-19: ढ्ढस््र के आधार पर आरडीएसओ ने तीन कंपनियां अप्रूव करीं।
जुलाई 2020 में "कवच" को राष्ट्रीय एटीपी घोषित किया गया।
मार्च 2022 तक: कवच को एक एक्सटेंडेड सेक्शन के रूप में 1200 रूट किलोमीटर पर स्थापित किया जाएगा।
मार्च 2022 में विभिन्न यूज केसेस और स्टेकहोल्डर की प्रतिक्रिया के आधार पर कवच स्पेसिफिकेशन वर्जन 4.0 का विकास करने का निर्णय लिया गया। 16.07.24 को कवच वर्जन 4.0 स्पेसिफिकेशन स्वीकृत एवं जारी किए गये। भारतीय रेलवे पर मिक्सड ट्रैफिक स्पीड डिफरेंशियल, लोको की विविधता, कोचिंग और वैगन स्टॉक की विभिन्न चुनौतियों के बावजूद दस साल से कम समय में यह किया गया।

कवच कार्य की वर्तमान स्थिति
दक्षिण मध्य रेलवे पर वर्जन 3.2 के साथ 1,465 रूट किलोमीटर पर डिप्लॉय किया गया है।
दिल्ली झ्र मुंबई और दिल्ली झ्र हावड़ा सेक्शन (93,000 रूट किलोमीटर) पर कार्य प्रगति पर है।
मथुरा-पलवल सेक्शन: 160 कि .मी./घंटे पर परीक्षण और सर्टिफिकेशन चल रहा है।
बोलियां (टेंडर)आमंत्रित की जा रही हैं
महत्वपूर्ण ऑटोमैटिक सेक्शन पर (9 5,000 रूट किलोमीटर)

आगामी योजना
भारतीय रेलवे पर चरणबद्ध तैनाती

फेस।
अगले 4 वर्षों में सभी लोकोमोटिव में कवच।आर एफ आई डी के माध्यम से सीमित ब्लॉक सेक्शन पर कवच सुरक्षा
 फेस ।।
स्टेशन एवं यार्ड कवच इक्यूपमेंट का प्रावधान। पूर्ण कमीशनिंग

कवच मुख्य विशेषताएं
यदि लोको पायलट ब्रेक लगाने में विफल रहता है तो स्वचालित ब्रेक लगता है। कैब में लाइन साइड सिग्नल को दोहराता है। मूवमेंट अथॉरिटी का रेडियो आधारित निरंतर अपडेट करता है। लेवल क्रासिंग गेटों पर आॅटो सीटी बजाता है। डायरेक्ट लोको से लोको संचार द्वारा टकराव से बचाव ।
कवच के मुख्य अवयव: कवच एक अत्यंत टेक्नोलॉजी इंटेंसिव सिस्टम है, और इसमें निम्न चीजें शामिल हैं:

स्टेशन कवच
लोको कवच सिग्नलिंग सिस्टम से जानकारी प्राप्त करता है और लोकोमोटिव का मार्गदर्शन करता है। ट्रेन का लोकेशन और डायरेक्शन निर्धारित करने के लिए इसे 1किलोमीटर की दूरी पर पटरियों पर और प्रत्येक सिग्नल पर स्थापित किया गया है। लोको और स्टेशन के बीच सूचना के आदान-प्रदान के लिए ट्रैक के किनारे टावर और ओ एफ सी।  ब्रेकिंग सिस्टम के साथ इंटीग्रेटेड स्टेशन कवच के साथ संचार करता है और यदि ड्राइवर ब्रेक लगाने में विफल रहता है तो स्वचालित ब्रेकिंग लागू करता है। स्टेशन कवच सिग्नलिंग इनपुट और लोको इनपुट इकट्ठा करता है और मूवमेंट अथॉरिटी को लोको कवच तक पहुंचाता है। रेडियो- लोकोमोटिव के साथ संचार के लिए।