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कूनो नेशनल पार्क में चीता प्रोजेक्ट को दो साल पूरे… केंद्र-राज्य में समन्वय की कमी

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भोपाल।  कूनो नेशनल पार्क में चीता प्रोजेक्ट को दो साल पूरे हो गए हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से 20 चीते लाए गए थे। इनमें से 8 चीतों की मौत हो चुकी है, लेकिन अच्छी खबर ये है कि 17 चीता शावकों का जन्म भी कूनो में हुआ है। इसमें से 12 अभी जीवत है। 17 सितंबर 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका से भी चीते लाए गए। भारत में चीतों को फिर से बसाने के इस प्रोजेक्ट को दो साल पूरे हो गए हैं। लेकिन चीतों की आजादी पर अभी भी संकट बरकरार है।
कूनो प्रबंधन का कहना है कि दो साल पहले, हमने एक ऐतिहासिक यात्रा शुरू की थी। लगभग 70 वर्षों के बाद भारत में चीतों को फिर से लाने की भारत की महत्वाकांक्षी परियोजना 17 सितंबर 2024 को दो सफल वर्ष पूरे कर रही है। यह परियोजना, वैश्विक स्तर पर एक अग्रणी प्रयास है, जो खोई हुई वन्यजीव आबादी और पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने की आशा का प्रतीक है। यह एक आसान रास्ता नहीं रहा है। आवास समायोजन से लेकर जंगल में शावकों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने तक, कई चुनौतियों पर काबू पाया गया। आज दुनिया इन चीता शावकों को उनके प्राकृतिक आवास में पनपते हुए देख रही है। यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बहाल करने की शुरुआत है। आगे और भी कई मील के पत्थर हैं।
प्रदेश में चीता प्रोजेक्ट के दो सालों में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले। आठ चीतों की मौत ने चिंता बढ़ाई, लेकिन 12 शावकों का जन्म उम्मीद की किरण लेकर आया। ये शावक अब कूनो के जंगल में पल रहे हैं और अपनी मां से शिकार करना सीख रहे हैं। कूनो प्रबंधन ने शावकों का एक वीडियो भी जारी किया है, जिसमें वे अपनी मां के साथ खेलते और उछलते-कूदते नजर आ रहे हैं।
हालांकि, अभी भी कई चुनौतियां बाकी हैं। कूनो जंगल चीतों की बढ़ती आबादी के लिए छोटा पड़ रहा है। इसीलिए गांधी सागर अभ्यारण को भी चीतों का नया घर बनाने की तैयारी चल रही है। यहां केन्या से चीते लाए जाएंगे। चीतों को खुले जंगल में छोडऩे को लेकर भी अभी संशय बना हुआ है। हाल ही में एक चीते की पानी में डूबने से मौत हो गई थी। ऐसे में कूनो प्रबंधन फिलहाल सभी चीतों को बाड़े में ही रखेगा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि चीता प्रोजेक्ट अभी शुरुआती दौर में है। सफलता के लिए अभी लंबा सफऱ तय करना है। भारत में चीतों को दोबारा बसाने के लिए पांच साल के लिए दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और अन्य अफ्रीकी देशों से हर साल करीब 12 से 14 चीतों को लाने की योजना बनाई है।