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नक्सल प्रभावित इलाकों में CRPF ने तैयार की चुनाव सुरक्षा रणनीति

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छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में नक्सलियों द्वारा बाधा खड़ी करने के मंसूबे कामयाब नहीं होंगे।

खासतौर पर 12 नवंबर को होने वाले प्रथम चरण के मतदान, जिसमें नक्सल का गढ़ कहे जाने वाले आठ जिले आते हैं, को सुरक्षित एवं शांतिपूर्वक तरीके से संपन्न कराने के लिए सीआरपीएफ ने अभेद रणनीति तैयार की है।

आसमान में दर्जनभर यूएवी (अनमेंड एरियल व्हीकल) और जमीन पर एलएमजी (लाइट मशीन गन) से बूथ, ईवीएम, कर्मचारी और वोटरों की हिफाजत होगी।

अत्याधिक संवेदनशील जिले जैसे सुकमा, दंतेवाड़ा या बीजापुर में अर्धसैनिक बलों व लोकल पुलिस को मिलाकर करीब 60-70 कंपनी (जिलेवार) तो कहीं पर 35-40 कंपनी तैनात की जाएंगी।

छत्तीसगढ़ में चुनावी तैयारियों के लिए सीआरपीएफ को नोडल एजेंसी बनाया गया है।

नक्सल प्रभावित आठ जिलों में हैं 18 विधानसभा सीटें

सुरक्षा के लिहाज से बस्तर जोन के नक्सल प्रभावित इलाके को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। दंडकारण इलाका, इसमें सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, जीरम घाटी यानी जगदलपुर का कुछ हिस्सा आता है जहां पर सीआरपीएफ तैनात है।

ये जिले सबसे अधिक संवेदशील माने जाते हैं। दूसरे नंबर पर नारायणपुर का क्षेत्र है। इसमें अबु जमाल का जंगल शामिल है। इस इलाके में बीएसएफ नक्सलियों पर नजर रखती है। तीसरा क्षेत्र कांकेर का है। इसके अंतर्गत कुंडा गांव, राजनंद गांव और जगदलपुर का एक हिस्सा आता है। यहां पर आईटीबीपी तैनात है।

सीआरपीएफ के पास जगदलपुर और रामपुर में एयरफोर्स के दो-दो हेलीकॉप्टर हैं।

नक्सली गतिविधियों के आधार पर टॉप जिले

सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, जगदलपुर, कांकेर, कुंडा गांव और राजनंदगांव शामिल हैं।

बूथ तक पहुंचने के लिए दिन-रात पैदल चलना पडता है

नक्सली इलाकों में बने पोलिंग बूथ तक पहुंचने के लिए सुरक्षा बलों को दिन-रात पैदल चलना पड़ता है। बूथ तक पहुंचने के दो ही तरीके होते हैं। एक हेलीकॉप्टर और दूसरा पैदल मार्च। चूंकि हेलीकॉप्टर हर जगह पर संभव नहीं है, इसलिए सुरक्षा बलों को चुनावी पार्टी लेकर पैदल निकलना पड़ता है। ईवीएम भी इन्हीं के हाथ में होती है।

सीआरपीएफ के डीआईजी इंटेलीजेंस एम. दिनाकरण का कहना है कि वाहन से चलने में खतरा रहता है। नक्सली सड़कों पर आईईडी (इंप्रोवाइस्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) लगा देते हैं।

इससे बचने के लिए अर्धसैनिक बलों के जवान चुनावी पार्टी को बूथ तक पैदल ही लेकर जाते हैं। इनकी सुरक्षा के लिए बलों की एक टीम पहले से ही उस मार्ग पर तैनात रहती है, जहां से चुनावी पार्टी गुजरती है। वे यूएवी और मानवीय इंटेलीजेंस की मदद से यह सुनिश्चित करते हैं कि रास्ते में कहीं कोई खतरा तो नहीं है। सीआरपीएफ के पास पर्याप्त संख्या में छोटे बड़े यूएवी हैं। इन्हें जरूरत के हिसाब से तैनात किया जाएगा।

यूएवी से रखी जाती है नक्सलियों पर नजर

बस्तर जोन में तैनात सीआरपीएफ के एक अधिकारी के मुताबिक, नक्सलियों पर नजर रखने के लिए यूएवी सबसे ज्यादा कारगर सिद्ध हुआ है। बल के पास प्लेन के आकार वाले यूएवी भी आ गए हैं। ये 40-50 किलोमीटर तक का इलाका कवर कर सकते हैं।

बड़ा यूएवी, हेलीकॉप्टर ज्यादा उंचाई पर पहुंचकर लाइव वीडियो और फोटो, लेता है जिनकी गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है। घने जंगल में ये तो यूएवी खासे कारगर साबित होते हैं। इनसे पेड़ों के बीच से नक्सलियों की हरकतें पता चल जाती हैं। हर जिले में कम से कम दो यूएवी और एयरफोर्स के हेलीकॉप्टर तैनात रहेंगे।

एक सप्ताह तक पोलिंग बूथ की मॉनीटरिंग होती है

वोटिंग से पहले एक सप्ताह तक बूथ के आसपास रोजाना मॉनीटरिंग होती है। कोई न कोई सुरक्षा बल बूथ का हर लिहाज से मुआयना करता है। लोगों से बातचीत की जाती है। सुरक्षा बलों को कई बार बूथ तक पहुंचने के लिए लंबा रास्ता करना पड़ता है। वजह, सुरक्षा बल जिस रास्ते से आते हैं, वहां से जाते नहीं हैं। इसके लिए वे अलग रास्ता लेते हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव में केवल दो घटनाएं सामने आई थीं, जिनमें सीआरपीएफ और बीएसएफ का एक-एक जवान मारा गया था। हालांकि ये घटनाएं चुनाव के दिन नहीं हुई थी। चुनाव शांतिपूर्वक सम्पन्न होने के बाद सुरक्षा बलों के वापस लौटते वक्त नक्सलियों ने उन पर हमला कर दिया था।