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छत्तीसगढ़ पीडीएस में ईडी का एससी में बड़ा खुलासा, हाईकोर्ट जज के संपर्क में थे घोटाले के दो आरोपी अफसर

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रायपुर.

छत्तीसगढ़ में एक हजार करोड़ रुपये के कथित नागरिक आपूर्ति निगम घोटाला (पीडीएस) मामले में बड़ी खबर निकल कर सामने आ रही है। इस मामले में शामिल दो अधिकारियों ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जज से संपर्क किया था। ईडी ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में जानकारी दी है। ईडी ने एससी को दिये अपने हलफनामे में दावा करते हुए कहा है कि छत्तीसगढ़ की तत्कालीन भूपेश सरकार के दो नौकरशाह अपने खिलाफ चल रहे मामले को कमजोर करने के लिए सबूतों से छेड़छाड़ करने की कोशिश किये थे। हालांकि, एक अगस्त के हलफनामे में ईडी के संबंधित जज का नाम नहीं बताया गया है।

ईडी ने दावा करते हुए कहा कि उनसे उनके भाई और राज्य के पूर्व मुख्य सचिव अजय सिंह के जरिए संपर्क किया गया था। ईडी ने इस संबंध में दावा करते हुए कहा कि इस मुकदमे की जांच को प्रभावित करने के लिए हमारे पास पर्याप्त सबूत हैं। टुटेजा तत्कालीन एडवोकेट जनरल सतीश चंद्र वर्मा के माध्यम से न्यायाधीश के संपर्क में थे। यह 31 जुलाई और 11 अगस्त 2019 के व्हाट्सएप से मिले संदेशों से क्लीयर है। व्हाट्सएप संदेशों से पता चला है कि न्यायाधीश की बेटी और दामाद का बायोडाटा तत्कालीन एजी की ओर से कार्रवाई करने के लिए टुटेजा को भेजा गया था, जो न्यायाधीश और दोनों मुख्य आरोपी टुटेजा और शुक्ला के बीच कोर्डिनेट का काम कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट को ईडी ने दावा करते हुए बताया कि छत्तीसगढ़ के नागरिक जन आपूर्ति निगम घोटाले में आरोपी दो वरिष्ठ नौकरशाह अनिल कुमार टुटेजा और आलोक शुक्ला अक्टूबर 2019 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जज के संपर्क में थे। उसी जज की अदालत से 16 अक्तूबर 2019 को आलोक शुक्ला को जमानत पर रिहाई का आदेश जारी हुआ था। इतना ही नहीं ईडी का दावा है कि तत्कालीन महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा दोनों दागियों और न्यायाधीश के बीच संपर्क बनाए हुए थे।

'नए सिरे से एक अलग स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जाए'
ईडी के वकील सौरभ पांडेय ने बताया कि साल 2020 में कोरोना लॉकडाउन शुरू होने के ठीक पहले अनिल टुटेजा और डॉ.आलोक शुक्ला की अग्रिम जमानत अर्जी छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में फाइल की गई थी। हाईकोर्ट  में इनकी जमानत अर्जी विचार करने के लिए रखा गया था जबकी बाकी सभी अन्य आपराधिक मामलों में जमानत आवेदन ट्रायल कोर्ट (जिला न्यायालय) में फाइल करनी होती है और अगर जिला न्यायालय से राहत नहीं मिलती है तब हाइकोर्ट में अर्जी लगानी पड़ती है। अनिल टुटेजा और डॉ. आलोक शुक्ला की जमानत अर्जी पर एक साथ साल 2020 में सुनवाई हुई थी। इतना ही नहीं ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में अनिल टुटेजा और डॉ. आलोक शुक्ला की जमानत रद्द करने के लिए याचिका दायर की है। ईडी की याचिका में ये भी मांग की गई है कि नान घोटाले की जांच नए सिरे से एक अलग स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए।

जज के भाई के संपर्क में थे आरोपी
सुप्रीम कोर्ट में ईडी ने अपने शपथ पत्र और दलील में कहा कि टुटेजा और शुक्ला आरोपी शुक्ला की अग्रिम जमानत के मामले के संबंध में न्यायाधीश के भाईके संपर्क में थे। क्योंकि न्यायाधीश की पीठ के समक्ष लंबित था।  जैसे ही 16 अक्टूबर 2019 को दोनों आरोपियों को जमानत दी गई तो न्यायाधीश के भाई को मुख्य सचिव के पद से हटा दिया गया और 1 नवंबर 2019 को योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। इसमें कहा गया है कि “आरोपी व्यक्ति अनुसूचित अपराध में अन्य मुख्य आरोपियों की भूमिका को कमजोर करने के लिए सह-अभियुक्त शिव शंकर भट्ट के मसौदा बयान को शेयर करने और संशोधित करने में शामिल थे। ताकि अनुसूचित अपराध में अन्य प्रमुख आरोपियों की भूमिका कमजोर साबित की जा सके।

व्हाट्सएप चैट से हुआ बड़ा खुलासा
ईडी का दावा है कि टुटेजा और शुक्ला के तत्कालीन महाधिवक्ता के साथ 4 अक्टूबर से 16 अक्टूबर 2019 के व्हाट्सएप चैट के विश्लेषण से जस्टिस चंदेल के भाई और तत्कालीन एडीजी आर्थिक अपराध शाखा-भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो रायपुर की भूमिका का पता चलता है। उस समय वो ही अनुसूचित अपराध का बचाव करने के प्रभारी थे। दोनों आरोपियों को भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी करने के लिए उनके खिलाफ दर्ज मामले को कमजोर करने में इन्होंने ही अहम भूमिका निभाई थी। एजेंसी ने दावा किया कि घोटाले पर राज्य ईओडब्ल्यू की रिपोर्ट से कई पैराग्राफ टुटेजा और शुक्ला के कहने पर मुख्य आरोपी के हितों की रक्षा के लिए हटा दिए गए थे। बाद में वही संशोधित रिपोर्ट हाईकोर्ट के सामने पेश की गई। ईडी ने कहा कि अभियुक्तों की संलिप्तता और उच्च पदस्थ संवैधानिक राज्य अधिकारियों की मिलीभगत से मुकदमे को पटरी से उतारने और साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने के ठोस प्रयास के संबंध में एक स्वतंत्र एजेंसी की ओर से जांच शुरू करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं।

जानें क्या था मामला
बीजेपी का आरोप है कि भूपेश बघेल के कार्यकाल में ये घोटाला हुआ था। राज्य में 13 हजार 301 दुकानों में राशन बांटने में गड़बड़ी उजागर हुई थी। केवल चावल में ही 600 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था। एक हजार करोड़ से ज्यादा का कुल घोटाला हुआ था। स्टॉक जांच नहीं करने के बदले में एक-एक राशन दुकान वाले से दस-दास लाख रुपये लिया गया था।

घोटला पर एफआईआर दर्ज
ईडी की रिपोर्ट पर कस्टम मिलिंग घोटला में एफआईआर दर्ज की गई है। कई राइस मिलर्स की ओर से नागरिक आपूर्ति निगम एवं एफसीआई में जो कस्टम मिलिंग का चावल जमा किया जाता है। उसमें व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया है। प्रति क्विंटल के हिसाब से अवैध राशि की वसूली की गई है। पद का दुरूपयोग करते हुए विभिन्न शासकीय अधिकारियों की ओर से राइसमिलर्स के साथ मिलीभगत कर लाभ प्राप्त कर शासन को आर्थिक क्षति पहुंचाई गई है। प्रीतिका पूजा को मनोज सोनी, प्रबंध संचालक मार्कफेड के मारफत रोशन चन्द्राकर की ओर से निर्देश था कि उन्हीं मिलर्स के बिल का भुगतान किया जाना है जिनकी वसूली की राशि रोशन चन्द्राकर को प्राप्त हुई है। किन मिलर्स को भुगतान किया जाना है, इसकी जानकारी संबंधित जिले के राईस मिलर्स एसोसिएशन के द्वारा मनोज सोनी के माध्यम से मिलती थी। आयकर विभाग की तलाशी में करीब 1.06 करोड़ रूपये मिले हैं। जिसका कोई लेखा-जोखा नहीं है। इसके साथ ही बहुत सारे आपत्तिजनक दस्तावेज एवं डिजिटल डिवाइस भी मिले हैं। करीब 140 करोड़ रूपये की अवैध वसूली राइसमिलर्स से किया जाना पाया गया है।