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 बिहार में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बिहार के राजनीतिक दल हरकत में आए

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नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने बिहार हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें बिहार सरकार के आरक्षण को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी करने के फैसले को रद्द कर दिया गया था।इससे पहले गुरुवार को नीतीश कुमार ने विधानसभा में बताया था कि उन्होंने प्रधानमंत्री से आरक्षण बढ़ाने के फैसले को संविधान की नौवीं अनुसूची में डालने की अपील की है।दरअसल इस सूची में शामिल केंद्र और राज्य सरकार के कानूनों को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है।मोदी सरकार ने इस पर अभी कोई फैसला नहीं लिया है।इससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया। इसके बाद बिहार के राजनीतिक दल हरकत में आ गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। उसका कहना है कि नौवीं अनुसूची में पहले से ही 284 कानून हैं। केंद्र सरकार को बिहार के मामले पर गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए। लेकिन जेडीयू की सहयोगी बीजेपी ने उसकी इस मांग पर अभी तक चुप्पी साधी हुई है। हालांकि उसने जातीय सर्वेक्षण और आरक्षण बढ़ाने का समर्थन किया था। उसको इस बात का डर सता रहा है कि अगर केंद्र सरकार ने नीतीश कुमार की इस मांग को मान लिया तो अन्य राज्यों से इसी तरह की मांग की जाने लगेगी। ऐसे में हालात संभालना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
बिहार जैसे राज्य, जहां की राजनीति में जाति महत्वपूर्ण भूमिका में रहती है, वहां जेडीयू के लिए आरक्षण बढ़ाने का फैसला अस्तित्व का सवाल हो सकता है। बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल जेडीयू पर लगातार इस बात का दबाव डाल रही है कि वह आरक्षण बढ़ाने के फैसले को नौवीं अनुसूची में डालने के लिए बीजेपी पर दवाब बनाए।उसका कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार जेडीयू और टीडीपी के भरोसे है, इसलिए जेडीयू को बीजेपी पर दवाब बनाना चाहिए।राजद ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार ने इस मामले की ठीक से पैरवी नहीं की। 
वहीं राज्य की राजनीति में पैर जमाने की कोशिश कर रहे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का कहना है कि उनकी पार्टी अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य  पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी), मुसलमान और सामान्य वर्ग को आनुपातिक आधार पर आरक्षण देगी।