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हरियाणा में गुटबाजी से परेशान कांग्रेस, वरिष्ठ नेता बोले- ऐसे तो कभी नहीं जीत पाएंगे; भाजपा की जगह आपस में लड़ रहे नेता…

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हरियाणा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन के बाद विधानसभा चुनाव को लेकर शुरू हुई गुटबाजी ने पार्टी नेतृत्व की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी प्रदेश में गुटबाजी रोकने में नाकाम है।

यही वजह है कि हरियाणा में चुनाव से पहले लोकसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा और वरिष्ठ नेता कुमारी शैलजा अलग-अलग गुटों में बंट कर यात्रा निकाल रहे हैं। इनकी शह पर कई और कांग्रेस नेता भी अपना- अपना गुट चुनकर बैठे हुए है।

विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश में गुटबाजी से पार्टी नेतृत्व असमंजस में है। पार्टी नेतृत्व के सामने सबको साथ लेकर चलने की चुनौती है।

पार्टी विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर मैदान में नहीं उतरती, तो उसके लिए जीत की दहलीज तक पहुंचना आसान नहीं होगा।

क्योंकि, मुख्यमंत्री बदलकर भाजपा पहले ही अपनी चुनावी रणनीति के संकेत दे चुकी है, जबकि कांग्रेस से अभी तक अपने घर के झगड़े भी हल नहीं हुए हैं।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो राज्य में पार्टी जीत सकती है, पर अभी जिस तरह की गुटबाजी देखने को मिल रही है, उससे परिणाम उम्मीद के मुताबिक नहीं आएंगे।

पार्टी में गुटबाजी का फायदा भाजपा को मिल सकता है। ऐसे में पार्टी को एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरना होगा और गुटबाजी से सख्ती से निपटना होगा। 

मुख्यमंत्री पद के लिए है पूरी लड़ाई
कांग्रेस नेता ने कहा, पार्टी किसी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किए बगैर केन्द्रीय नेतृत्व में चुनाव लड़े। हालांकि, भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग कर रहा है।

वहीं, हुड्डा विरोधी गुट की दलील है कि सीएम उम्मीदवार घोषित करने से गैर जाट वोट खिसक सकता है। लोकसभा में कांग्रेस जाट और दलित वोट की बुनियाद पर दस में पांच सीट पर जीत दर्ज की।

पार्टी ने रोहतक, हिसार और सोनीपत में जाट मतदाताओं की बदौलत अच्छा प्रदर्शन किया। दलित मतदाताओं के समर्थन से अंबाला और सिरसा सीट जीती।

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