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राष्ट्रपति मुर्मू ने पुरी में समुद्री तट पर लहरों और हवाओं का लिया आनंद

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू चार दिवसीय ओडिशा यात्रा पर हैं। सोमवार सुबह वे समुद्र तट पर समय बिताने पहुंची। इसके पहले उन्होंने पुरी में वार्षिक यथ यात्रा देखी। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने अनुभव भी साझा किए। रविवार को रथ यात्रा की शुरूआत हुई। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी इस यात्रा में शामिल हुईं। राष्ट्रपति ने एक्स पर पोस्ट किया कि 6 जुलाई की शाम को अपने गृह राज्य ओडिशा की चार दिवसीय यात्रा पर भुवनेश्वर पहुंचीं। उन्होंने रविवार को पुरी में रथ यात्रा देखी और इस तीर्थ नगरी में रात गुजारी। इसके बाद वे सुबह समुद्र तट पर पहुंची। वे काफी देर समुद्र तट पर टहलती रहीं। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि ऐसी जगहें हैं जो हमें जीवन के सार के करीब लाती हैं और हमें याद दिलाती हैं कि हम प्रकृति का हिस्सा हैं।

पहाड़, जंगल, नदियाँ और समुद्र तट हमारे भीतर की किसी चीज़ को आकर्षित करते हैं। आज जब मैं समुद्र तट पर टहल रही थी, तो मुझे आसपास के वातावरण के साथ एक जुड़ाव महसूस हुआ। हल्की हवा, लहरों की गर्जना और पानी का विशाल विस्तार। यह एक ध्यानपूर्ण अनुभव था।उन्होंने कहा कि इससे उन्हें गहन आंतरिक शांति मिली, जैसा कि उन्होंने रविवार को भगवान जगन्नाथ के दर्शन करके महसूस किया था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि इस तरह का अनुभव करने वाली वे अकेली नहीं हैं। उन्होंने कहा हम सभी को ऐसा महसूस हो सकता है जब हम किसी ऐसी चीज का सामना करते हैं। ये हमसे कहीं बड़ी है, जो हमें सहारा देती है और हमारे जीवन को सार्थक बनाती है।उन्होंने कहा कि दैनिक जीवन की भागदौड़ में लोग प्रकृति से अपना संबंध खो देते हैं। 

राष्ट्रपति ने कहा कि मानव जाति मानती है कि उसने प्रकृति पर अधिकार कर लिया है और अपने अल्पकालिक लाभ के लिए उसका दोहन कर रही है और इसका परिणाम सभी देख सकते हैं।राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि इस गर्मी के दौरान भारत के कई हिस्सों में भीषण गर्मी का प्रकोप रहा। हाल के वर्षों में दुनिया भर में मौसम की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले दशकों में स्थिति और भी खराब होने का अनुमान है। उन्होंने कहा, "पृथ्वी की सतह का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा महासागरों से बना है। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण वैश्विक समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जिससे तटीय क्षेत्रों के डूबने का खतरा है। महासागरों और वहां पाए जाने वाले वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध विविधता को विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के कारण भारी नुकसान हुआ है।उन्होंने कहा कि सौभाग्य से प्रकृति की गोद में रहने वाले लोगों ने ऐसी परंपराएं कायम रखी हैं जो हमें रास्ता दिखा सकती हैं।