भगवान कृष्ण की जिस पर कृपा हो जाती है, वो उनका ही हो जाता है. भगवान श्रीकृष्ण की दीवानी मीरा बाई की भी कुछ ऐसी ही कहानी है. चित्तौड़गढ़ की राजकुमारी श्रीकृष्ण की भक्ति में ऐसी सराबोर हुईं कि राज सुख और नौकर चाकर छोड़ कर वृन्दावन आ गई. यहां कृष्ण की भक्ति में रमकर भजन में लीन हो गई. वृन्दावन में आज भी मीरा बाई का मंदिर बना हुआ है. इस मंदिर में जो भी व्यक्ति मंजीरा बांधकर जाता है. उसकी मनोकामना कृष्ण पूरी अवश्य ही करते हैं.
चित्तौड़गढ़ से राज सुख छोड़ कृष्ण की दीवानी हो गई थी मीरा
वृन्दावन श्रीकृष्ण की क्रीड़ा स्थली कही जाती है. यहां कृष्ण अपने ग्वाला सखाओं के साथ खेला करते थे. कहते हैं श्रीकृष्ण की कृपा जिस पर हो जाये, वो सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है. उस व्यक्ति को फ़िर ना किसी राज सुख की जरूरत होती है और न ही किसी वैभव की. कृष्ण की भक्ति में सब कुछ छोड़कर मनुष्य उनका ही हो जाता है. चित्तौड़गढ़ की राजकुमारी मीरा बाई भी श्रीकृष्ण की भक्ति में इस कदर दीवानी हुई कि सभी मोहमाया को त्यागकर वृन्दावन चलीं आयीं. यहां आने के बाद उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का भजन और सेवा पूजा करना शुरू कर दिया. कई सालों तक मीरा बाई ने वृन्दावन में भजन किया. वहीं मीरा बाई मंदिर के महंत रूद्र प्रताप सिंह ने बताया कि ये मंदिर मीरा बाई का है. मीरा बाई के घर के नाम से भी इस स्थान को जाना जाता है. चित्तौड़गढ़ से मीरा बाई वृन्दावन कृष्ण की भक्ति करने के लिए आई थीं. मंदिर की सेवा पूजा हम लोग करते चले आ रहे हैं. 13वीं पीढ़ी संत मीरा बाई मंदिर की सेवा करती चली आ रही है. उन्होंने बताया कि संत मीरा बाई कृष्ण की दीवानी थी.
भक्त की मनोकामना कृष्ण करते हैं पूरी
बता दें कि संत मीरा बाई मंदिर में अगर कोई भक्त सच्चे मन से दर्शन करे.और इस मंदिर के गेट पर अपनी मनोकामना संत मीरा बाई के समक्ष रखे, तो उसकी अरदास जरूर पूरी होती है. संत मीरा बाई के भजन से श्रीकृष्ण प्रसन्न हुए और मीरा को अपने हृदय में समाहित कर लिया. मंदिर में जो भी व्यक्ति मंजीरा बांधकर जाता है. उसकी मनोकामना कृष्ण पूरी अवश्य ही करते हैं.