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मोदी मंत्रिमंडल में बिहार की इन जातियों को किया गया नजरअंदाज…. पड़ेगा भारी 

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विधानसभा चुनाव में हो सकता हैं नुकसान 

पटना । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार केंद्र की कमान संभाल ली है। बिहार और झारखंड मिलाकर 10 सासदों को मोदी कैबिनेट में जगह मिली है। इसके साथ ही तस्वीर भी साफ हो गई कि पीएम मोदी के तीसरे कार्यकाल में बिहार से कौन-कौन मंत्री बने हैं। 
बता दें, इस बार उतरप्रदेश के बाद सबसे अधिक बिहार से 8 मंत्री बनाए गए हैं। लेकिन, इसके बावजूद बिहार में सामाजिक समीकरण को लेकर सरगर्मी बेहद तेज है। मोदी मंत्रिमंडल में बिहार से मंत्रियों के नाम जैसे ही साफ हुए जातीय राजनीति के लिए चर्चित बिहार के मंत्रियों के जातीय समीकरण को लेकर खूब बातें होने लगी। मोदी मंत्रिमंडल में बिहार से जातीय समीकरण साधने की पूरी कोशिश की गई। इसमें 2 अति पिछड़ा समाज से, 2 दलित, 2 भूमिहार, एक ब्राह्मण और एक यादव को मंत्री बनाया गया है। यानी सामाजिक समीकरण को साधने की पूरी कोशिश की गई। लेकिन, इसी बीच बिहार की कुछ मुखर जाति जिनका चुनाव पर विशेष प्रभाव रहता है, उनकी नाराजगी की खबर आ रही है। 
राजपूत: राजनीतिक गलियारे में सबसे अधिक नाराजगी राजपूत समाज की ओर से देखने को मिल रही है। बिहार में यादव के बाद सबसे अधिक 7 सांसद राजपूत समाज से ही जीत कर आए हैं।  लेकिन, मंत्रिमंडल में एक भी राजपूत को मंत्री नहीं बनाया गया है। राजपूत जाति की नाराजगी का बड़ा असर विधानसभा चुनाव पर भी पड़ने की बात कही जा रही है। 
कुशवाहा: वहीं बिहार की दूसरी सबसे मुखर जाति कुशवाहा जिसके चार सांसद जीत कर आए हैं।  एनडीए के 2 और इंडिया गठबंधन से 2 कुशवाहा सांसद जीत कर आए हैं। लेकिन, बावजूद इसके एनडीए से किसी भी कुशवाहा को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है। इस बार बीजेपी से एक भी कुशवाहा को टिकट नहीं मिलने पर बीजेपी और जेडीयू को खामियाजा भुगतना पड़ा है। इनकी नाराजगी विधानसभा में भी भारी पड़ सकती है। 
वैश्य: बिहार में वैश्य जाति चुनावी समीकरण को प्रभावित करने वाली महत्वपूर्ण जाति के तौर पर जानी जाती है। लेकिन, इस बार वैश्य समाज से किसी को भी मोदी कैबिनेट में शामिल होने का मौका नहीं मिला है। लगातार चौथी बार संजय जायसवाल इस बार चुनाव जीत कर संसद में पहुंचे हैं। इसके बाद वैश्य समाज भी विधानसभा चुनाव को प्रभावित कर सकती है।