करमजीत कौर
जगदलपुर। आज पूरा प्रदेश, देश और यहां तक कि पूरा विश्व आदिवासी दिवस मना रहा है। आदिवासियों के लिए आज का दिन बेहद महत्व का है। राज्य सरकारें आदिवासी समुदाय के लिए भांति-भांति की घोषणाएं कर रहीं हैं ताकि उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके। पर भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज आदिवासी नेता विष्णुदेव साय के लिए आज का दिन यादगार बनकर रह जाएगा क्योंकि उनकी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने आज उन्हें प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के पद से हटा दिया। एक आदिवासी नेता के लिए इससे अधिक पीड़ादायक क्या हो सकता है कि उसे उस दिन कार्यमुक्त किया गया, जब पूरा विश्व उनके समाज के साथ और समाज के लिए उत्सव मना रहा है।
प्रदेश भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन की बात लम्बे समय से चल रही था। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भी मुहर लगाते हुए टिप्पणी की थी कि कौन पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनना चाहेगा। कई नेताओं ने तो इसके लिए नए कपड़े भी सिलवा लिए हैं। हालांकि समय के साथ यह चर्चा कम होने लगी थी, लेकिन जैसे ही पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने अजय जामवाल को प्रदेश के संगठन की बागडोर सौंपी, नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा फिर से होने लगी। दो रोज पहले अजय जामवाल जिस तरह से विष्णुदेव साय व पार्टी के प्रदेश संगठन महामंत्री पवन साय को लेकर दिल्ली गए, उसके बाद पार्टी के अंदर नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चर्चा तेज हो गई।चूंकि विष्णुदेव साय अनुसूचित जनजाति समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए कयास लगाए जा रहे थे कि प्रदेश भाजपा की कमान किसी आदिवासी को ही सौंपी जाएगी जो तेज-तर्रार होने के साथ ही संगठनात्मक रूप से मजबूत हो।
इसके लिए भाजपा सरकार में मंत्री रहे केदार कश्यप का नाम सबसे प्रमुख था। बस्तर में भाजपा के शीर्ष नेता दिवंगत बलिराम कश्यप के पुत्र केदार कश्यप के नाम की इसलिए भी चर्चा चल रही थी क्योंकि भाजपा बस्तर में पूरी तरह साफ हो चुकी है और यह माना जाता है कि बस्तर को जीते बिना राज्य में सरकार बनाना असंभव है। बारह विधानसभा तथा दो संसदीय क्षेत्र वाले बस्तर संभाग में भाजपा का सिर्फ एक सांसद (कांकेर) है। माना जा रहा था कि विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर केदार कश्यप के रूप में एक आदिवासी नेता की ताजपोशी होगी परंतु भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अनुसूचित जनजाति की जगह पिछड़े वर्ग पर दांव खेलना उचित समझा और बिलासपुर सांसद अरुण साव को प्रदेश भाजपा की कमान सौंप दी।
बेशक प्रदेश में पिछड़ा वर्ग की बड़ी आबादी है। विशेषकर तेली और कुर्मी समाज प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करने की भरपूर क्षमता रखता है परंतु अनुसूचित जनजाति की अनदेखी भी नहीं की जा सकती है। हालांकि नेता प्रतिपक्ष के रूप में भाजपा के पास पिछड़ा वर्ग का नेता था परंतु शीर्ष नेतृत्व ने आदिवासियों के पास जाने के बजाए पिछड़ा वर्ग के पास जाना अधिक मुनासिब समझा। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के इस फैसले के बाद अनुसूचित जनजाति समुदाय किस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करता है, यह आने वाले समय में पता चलेगा परंतु एक बात स्पष्ट हो गई कि अगले साले होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में आदिवासी बहुल बस्तर व सरगुजा में भाजपा की राह आसान नहीं रहेगी क्योंकि कांग्रेस इस फैसले का राजनीतिक लाभ इसलिए भी लेने की कोशिश करेगी क्योंकि उसके पास आदिवासी समाज का प्रदेश अध्यक्ष तथा पिछड़ा वर्ग का मुख्यमंत्री है।
पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद भाजपा के अंदरखाने में यह चर्चा चलने लगी है कि अब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष को भी बदला जाएगा। अगले एक साल विधानसभा के अंदर राÓय सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाले नेताओं के नामों के बीच रायशुमारी चल रही है। अरुण साव के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कुरुद के तेज-तर्रार विधायक अजय चंद्राकर दौड़ से बाहर माने जा रहे हैं। ऐसे में सबकी नजरें डॉ. रमन सिंह के अलावा बृजमोहन अग्रवाल तथा सौरभ सिंह पर जा टिकी हैं। राजनीति में समझ रखने वाले भाजपा के इस फैसले से संतुष्ट नहीं दिख रहे हैं क्योंकि उम्मीद की जा रही थी कि चुनावी साल में भाजपा एक तेज-तर्रार नेता को बागडोर सौंपेगी पर यह तो सच है कि अरुण साव तेज-तर्रार तो नहीं हैं।