करमजीत कौर
जगदलपुर। बारूद की दुर्गन्ध और खून से लथपथ बस्तर की धरती से अगर बैंक शुरू करने की मांग आने लगे, स्वामी आत्मानंद स्कूल प्रारंभ करने की पुरजोर मांग की जाने लगे, धरती काजू और कॉफी की फसलों से लहलहाने लगे तो निश्चित ही यह सब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सुकून देने वाली बातें होंगी और यह सब उनके उन सपनों को साकार करने के समान होगा, जो उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही देखा होगा।
मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री ने जिस तरह टाटा स्टील प्लाण्ट से आदिवासियों की जमीनों को मुक्त कराया था, उसी दिन उन्होंने बस्तर को लेकर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे। बीते साढ़े तीन साल में निश्चित रूप से बस्तर संभाग और वहां के वनवासियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है। इसी बदलाव के कारण मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चैन की नींद सो रहे होंगे क्योंकि बस्तर का वनोपज अब विदेशों में बेचा जा रहा है। डेनैक्स के कपड़ों की मांग सात समुंदर पार तक होने लगी है।
कोविड महामारी के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जैसे ही भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के तहत जनमानस से मिलने की योजना बनाई होगी, उनके जेहन में पहला स्थान बस्तर आया होगा। 04 मई से शुरू हुए उनके इस कार्यक्रम के पहले चार-पांच दिन सरगुजा के लिए छोड़ दिए जाएं तो करीब 22-23 दिन मुख्यमंत्री ने बस्तर संभाग की सभी 12 विधानसभा क्षेत्रों में गुजारा। कभी साल तो कभी छिंद तो कभी सरई के पेड़ के नीचे चौपाल लगाई और उन वनवासियों से सीधे मुखातिब हुए, जिन्होंने कभी मुख्यमंत्री को देखने-मिलने की कल्पना भी नहीं की होगी। इन चौपालों में मुख्यमंत्री ने कोई राजनीतिक बात नहीं की, वे वनवासियों के परिवार से जुड़े, उनके सुख-दुख को जाना, उनकी समस्याएं सुनीं और ऑन द स्पॉट फैसला कर दिया। सड़क, स्कूल, पुल-पुलिया, अस्पताल, प्रशासनिक संस्थाओं की समस्याओं का समाधान तो उन्होंने किया ही साथ ही व्यक्तिगत समस्याओं का भी मौके पर ही निपटारा कर दिया।
स्कूल, अस्पताल, थाना, पटवारी कार्यालय, राशन दुकान और आंगनबाड़ी केंद्र किसी भी सरकार का चेहरा माने जाते हैं। यहां की व्यवस्थाएं दुरुस्त होने पर यह माना जाता है कि सरकार पटरी पर है। मुख्यमंत्री ने अपने प्रवास के दौरान इन्हीं सब पर फोकस किया। उन्होंने थाने जाकर मालखाना देखा, अस्पताल में डॉक्टर और दवाइयां देखीं, राशन दुकानों के रजिस्टर पलटे और आंगनबाड़ी केंद्रों के भोजन का भी स्वाद लिया। मुख्यमंत्री के इस प्रयास से पूरे प्रदेश में प्रशासनिक कसावट देखने को मिल रही है और कोशिश की जा रही है कि भेंट-मुलाकात के दौरान कोई शिकायत न हो पाए क्योंकि शिकायत सही पाए जाने पर मुख्यमंत्री फिल्म नायक के अनिल कपूर की स्टाइल पर मौके से ही कार्रवाई के आदेश टाइप करा रहे हैं।
हाल ही में प्रदेश कांग्रेस ने नव चिंतन शिविर का आयोजन किया था, जिसमें 2023 में होने वाले विधानसभा के चुनाव में प्रदेश की 75 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य रखा गया। इससे पहले यह बात सामने आई थी कि कांग्रेस के कुछ विधायकों का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं है हालांकि मुख्यमंत्री ने तब कहा था कि कुछ विधायकों के काम में कुछ कमियां हैं, जिसे समय रहते दूर कर दिया जाएगा। कुछ समय पहले मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि अगले चुनाव में विधायकों को जिताने की जिम्मेदारी उनकी है। 75 सीटों में जीतने का लक्ष्य बेशक मुख्यमंत्री का भी लक्ष्य होगा और बस्तर संभाग के दौरे में उनकी कार्यप्रणाली इस दिशा में काम करती दिख रही है। हर विधानसभा क्षेत्र के दौरे में उनके बगल में स्थानीय विधायक की मौजूदगी एक रणनीति का हिस्सा है। विधायक को महत्व देकर मुख्यमंत्री स्थानीय स्तर पर कांग्रेस को मजबूती प्रदान करते दिख रहे हैं।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बस्तर दौरान अब समाप्त हो चुका है। बीते 22-23 दिनों में उन्होंने बस्तर को बेहद नजदीक से देखा और वहां के सैकड़ों लोगों से रू-ब-रू हुए। यह अनुभव विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाने के लिए बेहद उपयोगी होगा। प्रवास के दौरान उन्होंने कई बार कहा कि बस्तर के अंदरूनी इलाकों में सहकारी बैंक की शाखाएं शुरू करने तथा आत्मानंद इंग्लिश स्कूल शुरू करने की मांग का आना एक सुखद अनुभूति दे रहे है। यह इस बात का प्रमाण है कि बस्तर के वनवासी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो चुके हैं तथा वहां के नौनिहालों में पढऩे की प्रबल ललक जागृत हुई है जो बस्तर के एक खूबसूरत भविष्य का संकेत है।
भेंट-मुलाकात कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री ने जिस तरह से बस्तरवासियों से सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत के बारे में पूछताछ की और जिस तरह से जवाब मिले, वह निश्चित रूप से मुख्यमंत्री को सुकून पहुंचाने वाली रही होगी क्योंकि अधिकतर सरकारी योजनाओं का जमीन पर असर दिख रहा है। खासकर कर्ज माफी तथा राजीव गांधी गोधन न्याय योजना ने बस्तर के वनवासियों को आर्थिक रूप से सम्पन्न बना दिया है। मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप इन वनवासियों की जेबों में पैसा जा रहा है, जिससे वे अपनी जरूरतों को पूरा कर पा रहे हैं। मुख्यमंत्री यह देखकर भी संतुष्ट हुए होंगे कि स्व सहायता समूहों के माध्यम से बस्तर की महिलाएं आत्म निर्भर हो रही हैं।
22-23 दिनों तक बस्तर के हर विधानसभा क्षेत्र में दिन और रात गुजारने व वहां के सैकड़ों लोगों से मिलने के बाद मुख्यमंत्री निश्चित रूप से संतुष्ट होंगे कि उनकी सरकार की दिशा सही है। प्रदेश के मेहनतकशों के लिए उन्होंने जो योजनाएं शुरू की हैं, उनका लाभ मिलने लगा है और अब वह दिन दूर नहीं जब प्रदेश के विकास में बस्तर के वनवासी भी बराबर के भागीदार बन जाएंगे। मुख्यमंत्री का यह सपना अवश्य पूरा होगा। ……आमीन