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अखिलेश के सामने कांग्रेस का आत्मसमर्पण, क्या यूपी में पार्टी के लिए आत्मघाती साबित होगा 

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नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश में 13 नवंबर को होने वाले उपचुनावों को लेकर कांग्रेस के लिए एक नई चुनौती सामने आई है। इसमें मैदान में उतरने से पहले ही कांग्रेस ने हार मान ली, तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या पार्टी अपनी स्थिति को बनाए रख पाएगी? समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख और पूर्व अखिलेश यादव ने घोषणा की है कि सभी 9 विधानसभा सीटों पर गठबंधन के उम्मीदवार सपा के चुनाव चिन्ह साइकिल पर चुनाव लड़ने वाले है। अखिलेश के इस फैसले को कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

अखिलेश ने कहा, बात सीट की नहीं, जीत की है। हालांकि, यह स्पष्ट है कि उन्होंने कांग्रेस को एक भी ढंग की सीट नहीं दी, इससे अनुमान लग रहा है कि वे कांग्रेस के कमजोर प्रत्याशियों को देख रहे हैं। यदि सपा को लगता है कि कांग्रेस के प्रत्याशी जीत नहीं सकते, तब यह सवाल उठता है कि अखिलेश ने कांग्रेस को कुछ बेहतर सीटें क्यों नहीं दीं । पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने कई सीटों पर अच्छे वोट हासिल किए थे, जिससे यह भी सवाल खड़ा होता है कि क्या कांग्रेस को एक-दो अच्छी सीटें मिलतीं तब स्थिति यूपी में और बेहतर होती।

 
वहीं कांग्रेस के उपचुनाव में न उतरने के फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि पार्टी कमजोर सीटों पर लड़ने से बचना चाहती थी, तब क्या यह आत्मसमर्पण नहीं है? चुनावी लड़ाई में हिस्सा लेना और हारना भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल बना रहता। अखिलेश ने गाजियाबाद और खैर जैसी सीटें कांग्रेस को दीं, जो जीतना कठिन था। फिर भी, कांग्रेस को हर हाल में मैदान में रहना चाहिए था।

कांग्रेस के लिए वर्तमान में स्थिति बेहद चिंताजनक है, क्योंकि एक समय ऐसा था जब पार्टी ने उत्तर प्रदेश में मजबूत स्थिति बनाई थी। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के समय से ही पार्टी ने यूपी में अपनी पकड़ खो दी थी, जब उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर अधिकांश सीटें उन्हें दे दीं। अब कांग्रेस के लिए ऐसा कदम उठाना और भी खतरनाक हो सकता है।
यूपी में कांग्रेस के हजारों कार्यकर्ताओं के मनोबल को भी निर्णय से बड़ा झटका लगा है। जब कार्यकर्ता देखते हैं कि नेतृत्व खुद को सपा के सामने झुका रहा है, तब उनकी अपने नेता और पार्टी में विश्वास कमजोर हो सकता है। इससे कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष और बगावत की संभावना भी बढ़ सकती है।

राजनैतिक जानकारों की माने तब अखिलेश का यह कदम स्पष्ट रूप से कांग्रेस को कमजोर करने का प्रयास है। अगर कांग्रेस को अपनी पहचान और स्थिति को बनाए रखना है, तब अपने कार्यकर्ताओं और नेतृत्व के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को साबित करना होगा। यूपी में चुनावी मैदान से बाहर रहना न केवल पार्टी के लिए शर्मिंदगी का कारण है, बल्कि यह उसकी चुनावी रणनीति को भी कमजोर कर सकता है।